THE PATH OF EMANCIPATION THROUGH RENUNCIATION

Chapter 18 Shloka 1

अर्जुन उवाच

संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।

त्यागस्य च हृषिकेश पृथक्केशिनिषूदन।।१।।

Arjuna asks of Lord Krishna:

O mighty armed One! O omniscient One!

O Slayer of the demon Keshi! I wish to know

separately the essence of sanyas or renunciation

as differentiated from tyaag – relinquishment.

THE PATH OF EMANCIPATION THROUGH RENUNCIATION

Chapter 18 Shloka 1

अर्जुन उवाच

संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।

त्यागस्य च हृषिकेश पृथक्केशिनिषूदन।।१।।

In order to understand the essence of sanyas and tyaag, Arjuna asks of Lord Krishna:

O mighty armed One! O omniscient One! O Slayer of the demon Keshi! I wish to know separately the essence of sanyas or renunciation as differentiated from tyaag – relinquishment.

Arjuna refers to Lord Krishna as Mahabaho.

Mahabaho (महाबाहो)

1. O mighty armed One!

2. O valiant Krishna, doer of courageous deeds!

3. O Extinguisher of pain!

4. O Supporter of all!

5. O Protector of all!

6. O Hrishikesh, Lord of the sense faculties!

7. O Queller of internal sorrow!

8. O Omniscient One!

9. O Lord of the mind, Krishna!

10. O Lord of the senses, Krishna! Thou who inspires the sense faculties! O slayer of Keshi, the demon!

­­–  Thou who dost kill those who rob the wealth of the saintly.

­­–  Thou who slayest the wicked and evil enemy.

­­–  Thou who annihilates the demons who rob us of goodness and virtue!

Having taken this name of the Lord, Arjuna seems to be saying to the Lord:

1. Thou art strong.

2. Thou art also the Lord of this mind.

3. Thou art infinitely pure.

Acquaint me with the difference between sanyas and tyaag – renunciation and relinquishment. What is their essence?

In other words, Arjuna seeks to know what he must relinquish to attain the state of a sanyasi or a tyaagi.

अथाष्टादशोऽध्याय:

अर्जुन उवाच

संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।

त्यागस्य च हृषिकेश पृथक्केशिनिषूदन।।१।।

संन्यास और त्याग का तत्त्व जानने के लिए अर्जुन पूछते हैं भगवान से :

शब्दार्थ :

१. हे महाबाहो! हे अन्तर्यामी!

२. हे केशिनिषूदन! (यानि केशि दैत्य को मारने वाले,)

३. मैं संन्यास और त्याग के तत्व को,

४. पृथक् पृथक् जानना चाहता हूँ।

तत्त्व विस्तार :

अर्जुन भगवान से कहते हैं, हे महाबाहो!

महाबाहो : यानि,

क) हे विशाल भुजाओं वाले!

ख) हे वीर पराक्रमी कृष्ण!

ग) हे दुःख विमोचक कृष्ण!

घ) हे सबकी मदद करने वाले कृष्ण!

ङ) हे सबका संरक्षण करने वाले कृष्ण!

च) हे हृषिकेश! यानि, इन्द्रिय शक्ति पति!

छ) हे आन्तरिक दुःख विमोचक कृष्ण!

ज) हे अन्तर्यामी कृष्ण!

झ) हे मन के स्वामी कृष्ण!

ञ) हे इन्द्रिय पति कृष्ण! इन्द्रिय प्रेरक कृष्ण! हे केशिनिषूदन कृष्ण! यानि,

– साधुओं के धन को चुराने वाले को मारने वाले!

– अरियों या दुष्टों को मारने वाले!

– सतीत्व हरने वाले असुरों को मारने वाले!

– साधुता के गुणों पर प्रहार करने वालों को मिटाने वाले!

यह नाम लेकर अर्जुन भगवान को मानो कह रहे हैं कि हे कृष्ण!

1. तुम बलवान् भी हो।

2. तुम मन के स्वामी भी हो।

3. तुम पूर्णतयः शुद्ध भी हो।

तुम ही बताओ मुझे, कि :

क) संन्यास और त्याग में क्या भेद है?

ख) संन्यास और त्याग का तत्त्व क्या है?

क्यों न कहें कि अर्जुन भगवान से पूछ रहे हैं कि क्या त्यागूँ जो त्याग हो जाये, संन्यास हो जाये?

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