अध्याय २
अथ द्वितीयोऽध्याय:
संजय उवाच
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन:।।१।।
संजय कहते हैं कि :
शब्दार्थ :
१. उस ऐसे कृपा से भरे हुए,
२. अश्रुपूर्ण और व्याकुल नेत्रों वाले,
३. तथा शोकयुक्त अर्जुन को,
४. भगवान मधुसूदन* ने यह वाक्य कहा।
*(‘मधुसूदन’ के तत्व अर्थ के लिये प्रथम अध्याय का श्लोक ३४ और ३५ देखिये।)
तत्व विस्तार :
सुन नन्हीं!
यहाँ संजय पुन: अर्जुन की स्थिति दर्शा रहे हैं। अर्जुन कृपा से भरे हुए थे। यानि, उनके मन में :
1. अतीव रहम भरा हुआ था।
2. दयालुता भरी हुई थी।
3. करुणा भरी हुई थी।
4. क्षमा का भाव भरा हुआ था।
5. उनका मन अनुकम्पा पूर्ण हो गया था।
फिर कहा अर्जुन के नयन ‘अश्रुपूर्ण’ हो गये, क्योंकि उनके मन में :
1. मोह जागृत हो गया था।
2. कृपणता जागृत हो गई थी।
3. अतीव भीरुता ने जन्म ले लिया था।
4. द्वन्द्व उत्पन्न हो गये थे।
अर्जुन घबरा गये थे। वे युद्ध करने के अपने ही निश्चय से विचलित हो गये थे।
फिर संजय ने कहा कि अर्जुन ‘व्याकुल’ हो गये। व्याकुल का अर्थ है :
विचलित हो जाना; घबरा जाना; किंकर्तव्य विमूढ़ हो जाना; भयभीत हो जाना; परेशान हो जाना; चिन्ताग्रस्त हो जाना; सन्ताप पूर्ण हो जाना; विक्षेप पूर्ण हो जाना; अशान्त और बेचैन हो जाना।
फिर संजय ने कहा अर्जुन ‘शोक युक्त’ हो गये यानि :
1. दु:खी, उदास तथा उत्साह हीन हो गये।
2. अर्जुन का मन मलिन हो गया।
3. अर्जुन संज्ञा हीनता यानि जड़ता को पा गये।
4. महा उद्विग्नता पूर्ण हो गये।
अब यह देख मेरी नन्हीं जान्! यह सब क्यों हुआ? अर्जुन की व्याकुलता क्यों?
क्योंकि :
क) अर्जुन को अपने नाते रिश्तों को देख कर मोह उठ आया।
ख) अर्जुन दैवी गुण सम्पन्न थे और अपने ही गुणों से संग कर बैठे।
ग) अर्जुन अपने मोह के कारण सत्त्व गुण के रूप और स्वरूप में भेद नहीं समझ सके।
घ) अर्जुन के सब बन्धु जब तक सम्मुख नहीं खड़े हुए थे, तब तक वह अधर्मी तथा अन्यायियों से नित्य युद्ध करते थे। अब जब अपने ही कुल वाले सामने आ गये तो:
– अर्जुन अपने सहज गुण भी भूल गये।
– ज्ञान का अर्थ भी बदल गया।
– पहले आततायियों को मारना पुण्य समझते थे, अब उसे ही पाप कहने लगे।
न्याय त्याग का फल :
जब इन्सान जीवन में अपने ही न्याय को बदलना चाहता है या जीवों का अपने से नाता देख कर न्याय बदल देता है, उस समय यही हाल होता है।
तब इन्सान :
1. भयभीत हो जाता है।
2. तड़प जाता है।
3. व्याकुल भी हो जाता है।
4. शोकाकुल भी हो जाता है।
कौरव कुल तथा उनके सहयोगी गण के प्रति अर्जुन के ये सब भाव उठने अनुचित थे, क्योंकि यह सत् पर आश्रित नहीं थे बल्कि मोह के कारण उत्पन्न हुए थे।
वास्तव में ऐसा द्वन्द्व अच्छे लोगों में ही उठता है। वही लोग कर्तव्य परायण हुए, किंकर्तव्य विमूढ़ हो जाते हैं, तड़प जाते हैं।