अध्याय १८
कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा।
कच्चिदज्ञानसम्मोह: प्रनष्टस्ते धनंजय।।७२।।
अब भगवान अर्जुन से पूछते हैं,
शब्दार्थ :
१. हे पार्थ! क्या (जो मैंने कहा, वह सब),
२. तुमसे एकाग्र चित्त से सुना गया?
३. हे अर्जुन! क्या (इससे) तेरा अज्ञान जन्य मोह,
४. नष्ट हो गया?
तत्त्व विस्तार :
भगवान पूछते हैं अर्जुन से, “क्या तुम्हारा मोह दूर हो गया?”
याद रहे अर्जुन ने भगवान से अपने मोह मिटाव के लिए प्रार्थना की थी। धर्म के प्रति किंकर्तव्यविमूढ़ता के भंजन की याचना की थी। सो अब भगवान विविध विधि समझाने के बाद अर्जुन से पूछते हैं कि :
– आप बताईये क्या हाल है आपका?
– आप बताईये क्या हाल है आपके मोह का?
– क्या अज्ञान जन्य मोह का आवरण उठ गया है?
– क्या शोक ग्रसित मन की दुर्बलता ठीक हुई?
– हाथ पैर जो शिथिल हो गये थे, क्या ठीक हो गये?
– क्या अब भी रण से भागने की सलाह हैं?
– क्या अब भी हाथों से गाण्डीव छुटा जाता है?
भाई! ये सब अज्ञान के कारण था। क्या जो मैंने तुझे कहा, तूने उसे एकाग्रचित्त हो कर सुना? क्या उस ज्ञान से अज्ञान जन्य मोह का नाश हो गया?