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Chapter 17 Shloka 24
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः।
प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम्।।२४।।
The acts of yagya, tapas and daan,
performed in the manner ordained
by the Scriptures, of those who recite
the words of Brahm, always begin with
the utterance of the divine syllable ‘Om’.
Chapter 17 Shloka 24
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः।
प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम्।।२४।।
The Lord explains to Arjuna, that since the Supreme Essence lies latent in Om Tat Sat, therefore:
The acts of yagya, tapas and daan, performed in the manner ordained by the Scriptures, of those who recite the words of Brahm, always begin with the utterance of the divine syllable ‘Om’.
The chanting of Om
Little one, those who know the entirety of That Whole, chant the syllable Om whenever they embark on the systematised practice of yagya, tapas and daan.
1. They know that all is Om.
2. They know that all is Brahm.
3. They therefore offer every deed to Brahm.
4. Thus Brahm Himself bears witness to their deeds.
5. Thus they invoke Brahm.
6. They glorify Brahm thus.
7. Thus they keep Brahm’s example before themselves.
8. They endeavour to practice yagya, tapas and daan as exemplified by Brahm Himself.
Actions offered to Brahm
If one acts knowing that all is Brahm:
a) one’s actions will become selfless in nature;
b) one will be incapable of doing anything for the fulfilment of personal desires;
c) one will no longer wish for the fruits of one’s actions;
d) one’s astuteness will increase;
e) one’s vigilance will increase;
f) hypocrisy, pride and ego will no longer even touch such a one;
g) each act will be permeated with faith;
h) one will be redeemed from sin;
i) the idea of doership and enjoyership will dissolve.
Then, such a one, will indeed be purified through the practice of yagya, tapas and daan.
Little one, even if one does not chant ‘Om’, if one becomes conscious that all is Brahm, it is sufficient; because the chanting of ‘Om’ is only for the purpose of remembering His Omnipresence.
Udahritya (उदाहृत्य)
The meaning of Udahritya here is ‘utterance’.
a) To speak.
b) To describe, to explain through example, to praise, to glorify.
c) Remembering Him and knowing Him to be a reality before starting any work in the world.
Little one, an individual can cross the first three stages of Om chanting the name of Ram, Krishna or Om. Thereafter, he himself is immersed in the One whose name he has chanted. Then his own name has no separate entity – his name becomes synonymous with the Lord’s divine epithets. Then, when his body, mind and intellect along with all their faculties and worldly belongings are surrendered to the Lord, such a one becomes completely silent.
Little one, then whose name shall he take? At the behest of others, he may utter “Ram, Ram!” But how can he thus chant his own name?
अध्याय १७
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः।
प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम्।।२४।।
भगवान कहते हैं कि अर्जुन, क्योंकि ‘ओम् तत् सत्’ में ही परम तत्त्व निहित है, इस कारण,
शब्दार्थ :
१. ब्रह्म का कथन करने वालों की,
२. यज्ञ, तप और दान की क्रियायें,
३. शास्त्र विधिवत्,
४. सर्वदा ओम् के उच्चारण से,
५. आरम्भ होती हैं।
तत्त्व विस्तार :
ओम् का उच्चारण :
नन्हीं जान्! पूर्ण की पूर्णता को जानने वाले लोग जब विधिवत् यज्ञ, तप, और दान की क्रियाओं को करते हैं, तब सर्वप्रथम ‘ओम्’ कहते हैं, क्योंकि :
1. पूर्ण ओम् ही है, यह वे जानते हैं।
2. पूर्ण ब्रह्म ही है, यह वे जानते हैं।
3. ओम् कह कर वे, हर क्रिया ब्रह्म को अर्पित करते हैं।
4. ब्रह्म का मानो साक्षित्व उपलब्ध करते हैं।
5. ब्रह्म का मानो आह्वान करते हैं।
6. ब्रह्म का मानो स्तुवन करते हैं।
7. ब्रह्म का उदाहरण सम्मुख धरते हैं।
8. ब्रह्म के समान यज्ञ, तप, दान करते हैं।
ब्रह्म अर्पित कर्म :
गर सब ब्रह्म का जान कर काज क्रिया करो तो :
क) वह निष्काम हो जायेगी।
ख) आप कामना अर्थ काज नहीं कर पाओगे।
ग) आप फल की चाहना पर ध्यान नहीं दोगे।
घ) दक्षता और भी बढ़ जायेगी।
ङ) सावधानी भी बढ़ जायेगी।
च) दम्भ, दर्प, अहंकार छू भी नहीं पायेंगे।
छ) हर क्रिया श्रद्धापूर्ण हो जायेगी।
ज) तब ही तो आप पाप विमुक्त हो पायेंगे।
झ) तब ही तो उनमें कर्तृत्व भाव गौण हो जायेगा।
ञ) तब ही तो उनमें भोक्तृत्व भाव गौण हो जायेगा।
त) तब ही तो उनमें यज्ञ, तप, दान पावन हो जायेंगे।
नन्हूं! यदि ओम् का उच्चारण न भी करो, तब भी यदि ये जान ले कि सब ब्रह्म ही हैं, तो काफ़ी है, क्योंकि ओम् का उच्चारण केवल ब्रह्म की पूर्णता याद रखने के लिए किया जाता है।
उदाहृत्य :
यहाँ उदाहृत्य का अर्थ ‘उच्चारण’ किया गया है।
उदाहृत्य का अर्थ है :
1. प्रकथन करना,
2. वर्णन करना, दृष्टान्त देना, स्तुति गान करना।
3. याद करके और उसे हक़ीक़त मान कर जीवन में कार्य आरम्भ करना।
नन्हूं! जीव ओम् के पहले तीन पड़ाव कृष्ण, राम, या ओम् के आसरे पार करता है, तत्पश्चात् नामी के नाम में वह स्वयं खो जाता है। तब मानो उसका अपना नाम नहीं रहता, उसके तन का नाम भगवान वाला हो जाता है। फिर जब उसका तन, मन, बुद्धि सम्पूर्ण अंगों सहित तथा सम्पूर्ण सांसारिक समिधा सहित भगवान के हो जायें, तब वह मौन हो जाता है। नन्हूं! तब वह नाम भी किसका ले? लोग कहें, तो वह राम राम भी करता है किन्तु स्वयं अपना नाम कैसे ले?