Chapter 15 Shloka 19

यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।

स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।।१९।।

The Lord says:

Arjuna, the man of wisdom who

knows Me in essence as Purushottam,

that all knowing being

worships Me in all respects.

Chapter 15 Shloka 19

यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।

स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।।१९।।

Now Bhagwan eulogises the one who knows the Lord as Purushottam. The Lord says:

Arjuna, the man of wisdom who knows Me in essence as Purushottam, that all knowing being worships Me in all respects.

One who knows Me thus as the Purushottam, having freed himself of all delusion, that man of wisdom knows all that is worth knowing. That one worships Me incessantly.

Little one, rightly so! He who knows that indivisible, incomparable Atma essence will believe in the unity of That Godhead on the practical plane. He will witness That Supreme Godhead as existent in all spheres and in every form. Thus he will know each one to be the Atma embodied. Every action of such a one will be imbued with the knowledge that each being is the Atma Itself. The personal individuality of such a knower will be non-existent.

a) He will witness Brahm Himself as the Atma abiding in all beings.

b) He will believe all names and forms to belong to That Supreme Lord.

c) He will employ the qualities of divinity in his own life.

d) He will serve the Lord’s qualities wheresoever he finds them prevalent.

e) He will follow the Lord’s injunctions to the letter.

Dear little one, in fact, such a one has already renounced the body idea. He is already established in union with the Divine.

Little one, it is indeed difficult to experience this truth about the Lord without knowing oneself – and one who knows this truth will truly become omniscient.

अध्याय १५

यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।

स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।।१९।।

अब भगवान उसकी महिमा गान करते हैं, जो भगवान को पुरुषोत्तम रूप से जानते हैं। भगवान कहने लगे :

शब्दार्थ :

१. अर्जुन! जो ज्ञानी पुरुष इस प्रकार,

२. तत्त्व से मेरे को पुरुषोत्तम जानता है,

३. वह सर्वज्ञ पुरुष,

४. सर्वभाव से मेरे को भजता है।

तत्त्व विस्तार :

भगवान कहने लगे, ‘जो मोह रहित हुआ मुझे इस प्रकार पुरुषोत्तम जानता है, वह पूर्ण रूप से, जो कुछ भी जानने योग्य है, उस सबको जानता है और वह निरन्तर मुझे ही भजता है।’

नन्हूं! ठीक ही तो है! जो पूर्ण रूप से अखण्ड, अद्वितीय आत्म तत्त्व को जानता है, वह व्यावहारिक स्तर पर भागवद् अखण्डता को मानेगा ही और उसको सर्वव्यापक, अखिल रूप जान कर, सबको आत्म स्वरूप ही मानेगा। ऐसा व्यक्ति जीवन में जिस से, जो भी करेगा, उसे आत्म तत्त्व जान कर ही करेगा। ऐसे सर्वज्ञ व्यक्ति का निजी अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा। वह :

क) सब भूतों में स्थित आत्म तत्त्व में नित्य ब्रह्म के दर्शन पायेगा।

ख) अखिल नाम रूप, भगवान को ही मानेगा।

ग) जीवन में भागवद् गुणों का ही इस्तेमाल करेगा।

घ) जीवन में, जहाँ भी भागवद् गुण के दर्शन पायेगा, उनकी चाकरी करेगा।

ङ) जीवन में भगवान के कथन का अक्षरश: अनुसरण करेगा।

नन्हीं जाने जान्! वास्तव में वह स्वयं तनत्व भाव को त्याग चुका होगा। वह स्वयं परम के योग में स्थित हो चुका होगा।

नन्हूं! अपने आपको बिन जाने, भगवान के इस तत्त्व को अनुभव सहित जानना कठिन है और जिसने इसको जान लिया, वह स्वयं सर्वज्ञ हो ही जायेगा।

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