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Chapter 15 Shloka 6
न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।६।।
The Lord says, Arjuna listen!
Neither can the sun, nor the moon,
nor fire illuminate that Supreme state,
reaching which there is no return.
That is My supreme abode.
Chapter 15 Shloka 6
न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।६।।
The Lord says, Arjuna listen!
Neither can the sun, nor the moon, nor fire illuminate that Supreme state, reaching which there is no return. That is My supreme abode.
Little one, the Lord now tells us about that Supreme abode which He repeatedly invites us to enter – and He demonstrates the path that leads towards it.
The essence of Brahm
1. Light cannot illuminate It.
2. There is no object which can make It visible to the eye.
The Lord wishes to explain:
a) the unmanifest Manifest;
b) the One whose form cannot be encompassed by the mind;
c) the matchless, incomparable Essence;
d) the Essence that lies beyond sense perception;
e) the Essence which cannot be grasped.
That which is devoid of attributes cannot even be understood – far less seen. The Lord says, “He who attains My said abode never returns.” Understand the connotation of this statement, Kamla.
How can the following be perceived?
1. Absence of the body idea;
2. Absence of the idea of individualism;
3. Absence of the idea of doership;
4. Eradication of the ego, meum and moha;
5. Mergence of the ‘I’ in the Atma;
6. Establishing the Lord in the place of one’s ‘I’.
Brahm’s nature cannot be perceived – it is proven over a long period of time. Then how can the sun, the moon, fire or any other luminary illuminate That One?
Little one, understand this in another way. It seems that the Lord Himself is inviting you to a feast in your own realm. He remarks, “You shall enter My abode,” but if one sees clearly, He is saying:
1. Renounce your pedestal and then come to Me.
2. Give Me your dominion.
3. You must not remain in your dwelling when I enter there.
4. I shall enter your home and fill it with My effulgence.
5. I shall enter your home and decorate it with My treasure of divine qualities, but you must not be there. I can only stay there on My own.
It is a little difficult to do this – is it not?
However, little one, do not fear. When you reach the Lord’s abode, you shall become its master. The truth is that there is no return from that divine abode. Even though your body may belong to the Lord, you will not even wish to claim it. Even though your body may gain the comforts of the whole world, you will not wish to inhabit it again.
So what is your decision?
When the Atma merges with the Atma, how will it matter to you where destiny takes you thereafter?
अध्याय १५
न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।६।।
भगवान कहते हैं, अर्जुन देख!
शब्दार्थ :
१. उस परम पद को,
२. न सूर्य प्रकाशित कर सकता है,
३. न ही चन्द्रमा प्रकाशित कर सकता है,
४. न ही अग्न प्रकाशित कर सकता है,
५. जहाँ पहुँचकर लौटना नहीं होता,
६. वही मेरा परम धाम है।
तत्त्व विस्तार :
नन्हूं! जिस परम धाम के लिये भगवान बार बार न्योता दे रहे हैं और जिसकी राह भी बता रहे हैं, अब उसके बारे में बताते हैं।
ब्रह्म स्वरूप :
1. ज्योति उसे ज्योतिर्मय नहीं कर सकती।
2. कोई विषय नहीं जो उसे दिखा सके।
भगवान यहाँ कहना चाह रहे हैं कि :
क) वह अप्रकट प्राकट्य है।
ख) अचिन्त्य रूप है।
ग) अनुपम, अतुल्य स्वरूप है।
घ) अतीन्द्रिय तत्त्व है।
ङ) अग्राह्य तत्त्व है।
जो सर्वथा निर्विशेष हो, उसे देखना तो दूर रहा, समझना भी असम्भव है। भगवान कहते हैं, ‘ऐसे मेरे धाम को जो पा ले, वह कभी लौट कर नहीं आता।’ इसे ज़रा समझ ले कमला!
1. तनत्व भाव अभाव का,
2. जीवत्व भाव अभाव का,
3. कर्तृत्व भाव अभाव का,
4. अहं, मम, मोह मिटाव का,
5. ‘मैं’ आत्म में विलीन हो जाने का,
6. ‘मैं’ की जगह पर तन में भगवान के बस जाने का,
दर्शन क्या हो सकता है? ब्रह्म स्वभाव का दर्शन नहीं होता, वह तो दीर्घ काल में प्रमाणित होता है। ऐसे तत्त्व को सूर्य, चन्द्रमा, या अग्न कैसे प्रकाशित कर सकते हैं?
नन्हीं! इसे दूसरे ढंग से समझ!
ऐसे लगता है, कि निमंत्रण भगवान ने दिया है और भण्डारा तुम्हारे क्षेत्र में होना है। कहते तो हैं कि, ‘कि तुम मेरे धाम में आओगी,’ किन्तु वास्तव में यदि ध्यान से देखा जाये तो वह कहते हैं :
1. ‘अपना सिंहासन छोड़ के आ।
2. अपना राज्य मुझे दे दे।
3. अपने घर में तुम न होना, जब मैं आऊँ।
4. तुम्हारे घर में आकर मैं उसे सम्पूर्ण प्रकाश से भर दूँगा।
5. तुम्हारे घर में आकर मैं उसे महा दैवी सम्पदा से श्रृंगारित कर दूँगा, पर तुम न होना वहाँ! वहाँ मैं अकेला ही रह सकता हूँ।’
क्यों, ऐसा करना ज़रा मुश्किल है न?
किन्तु नन्हूं! घबरा नहीं! जब तू भगवान के धाम में पहुँचेगी, तू वहाँ की मालकिन बन जायेगी। सच तो यह है, वहाँ जाकर कोई लौटना नहीं चाहता। तेरा तन तब चाहे भगवान का ही हो जाये, तब भी तुम उसे अपनाना नहीं चाहोगी। तेरा तन चाहे सम्पूर्ण जग के ऐश्वर्य पा ले, तब भी तुम लौट के इसमें आना नहीं चाहोगी।
क्यों नन्हीं! क्या सलाह है?
जब आत्मा आत्मा में जा मिलेगा, फिर तन को विधान जहाँ भी ले जाये, तुझे क्या?