Chapter 14 Shlokas 9, 10

सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।

ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत।।९।।

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।

रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।।१०।।

The attribute of sattva engages the individual in joy; the attribute of rajas engages one in action; the attribute of tamas veils knowledge and engages one in indolence. When rajas and tamas are suppressed, the attribute of sattva predominates. When sattva and tamas are quelled, the attribute of rajas rules and so also, when sattva and rajas are subdued, the attribute of tamas prevails.

Chapter 14 Shlokas 9, 10

सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।

ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत।।९।।

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।

रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।।१०।।

The Lord says, O Arjuna, listen!

The attribute of sattva engages the individual in joy; the attribute of rajas engages one in action; the attribute of tamas veils knowledge and engages one in indolence. When rajas and tamas are suppressed, the attribute of sattva predominates. When sattva and tamas are quelled, the attribute of rajas rules and so also, when sattva and rajas are subdued, the attribute of tamas prevails.

a) It is only when you relinquish desire, covetousness and greed along with your ignorant indolence that you will be able to perform actions that are beneficial to others and in which sattva predominates.

b) If you relinquish truth and love, which are characteristics of sattva, and if you renounce the slothfulness of tamas, only then will you be able to proceed without hesitation or fear in the pursuit of greed and desire!

c) When the will to perform meritorious deeds wanes, and when greed and desire are in abeyance, then only laziness will predominate and beneficial actions as well as worldly desires will be put on hold.

Look Kamla! Attributes or qualities influence other qualities in varied manners.

Qualities

1. Can be supportive and can aid in the furtherance of other qualities.

2. Can be antagonistic and thus cause division and differences.

3. Can be influential and change other qualities.

4. Can be repulsive and distance one from other qualities.

5. Can be attractive and draw other qualities.

6. Can be favourable or unfavourable.

All these interactions of qualities take place with other qualities.

a) Certain qualities suppress other qualities.

b) Certain qualities reinforce other qualities.

c) Certain qualities encourage one to utilise certain other qualities.

d) Certain qualities distance one from other qualities.

The Lord says, sattva impels a man towards joy and engages him in deeds which will bring him happiness. Rajas engages a man in the performance of action, whereas tamas veils knowledge and immerses a man in sloth and indolence.

अध्याय १४

सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।

ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत।।९।।

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।

रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।।१०।।

भगवान कहते हैं, अर्जुन सुन!

शब्दार्थ :

१. सतोगुण सुख में

२. और रजोगुण कर्म में लगाता है,

३. परन्तु तमोगुण ज्ञान को आवृत करके प्रमाद में लगाता है।

४. रज और तम को दबा कर सतोगुण होता है,

५. सत् और तम को दबा कर रजोगुण होता है,

६. ऐसे ही सत्त्व और रज को दबा कर तमोगुण होता है।

तत्त्व विस्तार :

भाई!

क) कामना, तृष्णा, लोभ छोड़ो और अज्ञान पूर्ण प्रमाद छोड़ो, तब ही तो सत् पूर्ण शुभ कर्म कर सकोगे किसी के लिये!

ख) सत् पूर्ण प्रेम छोड़ दोगे, तमपूर्ण प्रमाद छोड़ दोगे, तब ही तो बेधड़क लोभ तृष्णा और कामना की प्रवृत्ति में प्रवृत्त हो सकते हो।

ग) जब शुभ कर्म की चाह मिटे, लोभ चाहना नहीं रहे, या यूँ कहो, दब जायें; तब ही तो आलसी बन सकते हो, फिर शुभ कर्म और संसार की चाहना, दोनों को छोड़ दोगे।

देखो कमला! गुणों का गुणों पर कई प्रकार का प्रभाव पड़ता है।

गुण,

1. सहयोगी भी होते हैं, जो गुण वर्धन में सहायक होते हैं।

2. वियोगी भी होते हैं, जो विच्छेद या भेद उत्पन्न करते हैं।

3. प्रभावितकर भी होते हैं, जो गुण परिवर्तन करते हैं।

4. प्रतिकर्षितकर भी होते हैं, जो गुणों को दूर करते हैं।

5. आकर्षितकर भी होते हैं, जो किसी गुण को अपनी ओर खेंचते हैं।

6. अनुकूल भी होते हैं।

7. प्रतिकूल भी होते हैं।

ये सब सम्बन्ध गुणों के गुणों के साथ होते हैं।

– गुण ही गुणों को दबाते हैं।

– गुण ही गुणों को उभारते हैं।

– गुण ही गुणों को गुण प्रयोग के लिये प्रेरित करते हैं।

– गुण ही गुणों से दूर कर देते हैं।

यहाँ भगवान कहते हैं कि सतोगुण जीव को सुख की ओर आकर्षित करता है और सुख उपार्जन में लगाता है। रजोगुण कर्मों में लगाता है और तमोगुण तो ज्ञान को आवृत करके प्रमाद में डालता है।

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