अध्याय १३
तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् ।
स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे श्रृणु ।।३।।
क्षेत्र क्षेत्रज्ञ के विषय में भगवान कहते हैं :
शब्दार्थ :
१. वह क्षेत्र जो है और जैसा है,
२. तथा जिन विकारों वाला है,
३. और जिस कारण से जो हुआ है,
४. तथा वह क्षेत्रज्ञ भी जो है,
५. और जिस प्रभाव वाला है,
६. वह सब संक्षेप में तू मुझसे सुन !
तत्त्व विस्तार :
भगवान कहते हैं, मैं क्षेत्र क्षेत्रज्ञ का सार कहूँगा तुझे कि यह तन क्या है और क्यों है? यह क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ,
1. जो है, जैसा है,
2. जिस धर्म से युक्त है,
3. जिस स्वभाव से बंधा है,
4. जिस गुण से बंधा है,
5. किसका यह कारण है,
6. किसका यह कार्य है,
7. कौन से विकारों वाला है
8. और कैसा प्रभाव है इसका,
भगवान कहते हैं, ‘यह सब संक्षेप से तुझे कहता हूँ।’