अध्याय ११
अर्जुन उवाच
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघा:।।३६।।
गद्गद् अर्जुन बोला कृष्ण से :
शब्दार्थ :
१. हे कृष्ण! यह योग्य ही है कि,
२. आपके कीर्तन से जग हर्षित होता है
३. और अनुराग को भी प्राप्त होता है।
४. भयभीत हुए असुर गण दिशाओं में भागते हैं
५. और सब सिद्ध गणों के समुदाय आपको नमस्कार करते हैं।
तत्व विस्तार :
अर्जुन कहने लगे भगवान से, ‘यह उचित ही है कि,
क) जग सारा तेरे गुण गाता है।
ख) गा गाकर महिमा तुम्हारी, फिर भी तुझे कोई जान नहीं पाता।
ग) जितना जितना जाने तुझे, तुम्हारी ओर उतना ही आकर्षण बढ़ जाता है।
घ) गुण गाने में निहित शक्ति है। जितने गुण गायें, उतनी ही निरन्तर भक्ति और बढ़ जाती है।
ङ) जग आसक्ति स्वत: मिट जाती है और तुझ में भक्ति स्वत: बढ़ जाती है।
च) जो तेरा नाम लेता है, मुदित मनी वह हो जाता है। उसके पूर्ण दु:ख पल में विनष्ट हो जाते हैं।
छ) अपरम्पार तेरी महिमा है, जो पल में चित्त को पावन कर देती है।
ज) असुर तुझे नहीं सह सकते, वे भयभीत होकर भागते हैं। तुमसे छुपे हुए फिरते हैं वे, पर तुम वहाँ भी होते हो जहाँ वे तुमसे भाग कर जाते हैं।
झ) पाप विनाशक परम पावन तू आप है।
ञ) सिद्ध गण तुझे नमन करें, महा पावनता तू आप है।’
सिद्ध गण का नमन है पूर्ण नमन,
इक बार झुके तो झुके रहे।
इक बार जो सीस झुका दिया,
फिर सीस पे राम ही राज्य करे।।
तन मन बुद्धि जीते जी,
वे भगवान को दे देते हैं।
प्राणों से भी जब संग मिटे,
भगवान वास वहाँ करते हैं।।
नमन हुआ तो मैं गया,
बिन मैं के गये न राम आयें।
जिस पल प्राणा राम को दे,
सप्राण राम वहाँ हो जायें।।
कीर्तन :
कीर्तन का अर्थ है,
1. यशोगान करना।
2. गुणों का गान करना।
3. स्तुति करना।
4. पुकारना तथा प्रार्थना करना।
5. पुनरावृत्ति करना।
6. घोषणा करना।
नन्हीं! कीर्तन का वास्तविक अर्थ है भगवान के गुणों को समझ कर उन्हें अपने जीवन में लाने की घोषणा करना।
भगवान की वास्तविक ख्याति तथा पुनरावृत्ति तो तब ही हो सकती है यदि उनके गुणों का यशोगान करने वाले स्वयं उनके गुणों की प्रतिमा बन जायें। भगवान के सहज जीवन में उनके जो गुण दिखते हैं, उन्हें यदि सच्चा भक्त समझेगा तो वह उन्हें अपने जीवन में लाना चाहेगा। उस भक्त का अनुराग भागवत् और दैवी गुणों से और बढ़ जायेगा।
भगवान की जब महिमा गाते हो तो उसे करुणापूर्ण, क्षमा स्वरूप, भक्त वत्सल, दु:ख विमोचक इत्यादि कहते हो। यदि यही गुण आप अपने में ले आओ तो आप सब पर करुणापूर्ण दृष्टि रखोगे, गिले शिकवे छोड़ कर सबको क्षमा करोगे, सबके दु:ख हरने का प्रयत्न करोगेतब आप स्वयं भी पावन ही हो जाओगे।