अध्याय १०
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर:।।३५।।
भगवान कहते हैं :
शब्दार्थ :
१. सामों में मैं बृहत्साम हूँ,
२. छन्दों में मैं गायत्री हूँ,
३. मासों में मैं मार्गशीर्ष मास हूँ,
४. ऋतुओं में मैं बसन्त ऋतु हूँ।
तत्व विस्तार :
क) नन्हीं! भगवान कहते हैं, “सामों में मैं बृहत्साम हूँ।” इसी अध्याय के बीसवें श्लोक में भगवान ने कहा कि “मैं वेदों में सामवेद हूँ।”
अब कह रहे हैं कि “सामवेद में मैं बृहत्साम हूँ।” ‘बृहत्साम’ में सबको ईश्वर रूप मान कर, इन्द्र की स्तुति गायी हुई है।
ख) छन्दों में भगवान अपने आपको ‘गायत्री छन्द’ कहते हैं।
गायत्री मंत्र में भगवान से बुद्धि की याचना की गई है, जिससे जीव प्रकाश तथा आत्मा की ओर बढ़ सके। गायत्री मंत्र पर ध्यान लगाने से बुद्धि पावन होती है। वेदों में यह सर्वोच्च मन्त्र माना जाता है और भगवान कहते हैं, ‘यह मैं ही हूँ।’
ग) भगवान ने कहा “मासों में मैं मार्गशीर्ष मास हूँ।”
मार्गशीर्ष मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर के महीने को कहते हैं। यह वह मास है जब न अति गर्मी होती है, न अति सर्दी होती है। भगवान कहते हैं – ‘यह मार्गशीर्ष महीना मैं ही हूँ।’
घ) ऋतुओं में भगवान अपने आपको ‘बसन्त ऋतु’ बताते हैं।
बसन्त ऋतु में चहुँ ओर हरियाली होती है। बसन्त ऋतु सुन्दरता तथा मानो प्रकृति के श्रृंगार का समय होता है। यह सौम्य ऋतु भगवान स्वयं हैं।