Chapter 10 Shloka 26

अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:।

गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि:।।२६।।

I am the Peepal amongst all trees;

I am Narada amongst the Devrishis or the godly sages;

I am Chitrarath amongst the Gandharvas

and Kapil Muni amongst the Realised Souls.

Chapter 10 Shloka 26

अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:।

गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि:।।२६।।

The Lord now says:

I am the Peepal amongst all trees; I am Narada amongst the Devrishis or the godly sages; I am Chitrarath amongst the Gandharvas and Kapil Muni amongst the Realised Souls.

The peepal tree

1. This tree is considered to be extremely pure.

2. All its components, from its leaves to its roots are used in the manufacture of medicines.

3. It is known to purify the atmosphere.

4. Its fragrance destroys germs that injure the body.

5. The Lord proclaims that He Himself is the peepal tree.

The Lord now proclaims, “I am Narad amongst the Devrishis or the godly sages.”

a) Devrishi Narada is known to be the metaphysical son of Brahma.

b) He is the knower of all wisdom.

c) He imparts knowledge to the devtas.

d) He is a gyani bhakta or an enlightened devotee whom the Lord Himself has proclaimed to be His very Self.

e) He endows even the demonic with detachment.

f) He is the knower of the past, present and future and is truly omniscient.

Therefore the Lord claims, “I am Narada.”

The Lord now says that He is Chitrarath amongst the Gandharvas.

Chitrarath is the king of the Gandharvas. Those who regale the divine residents of Indraloka with song and drama are called Gandharvas. They attract the deities and entertain them. They are known to emancipate even the deities. They bestow special powers and continually test the abilities and potential of the aspirant. Those spiritual aspirants who remain unattached with the powers conferred upon them by these Gandharvas, progress towards the Atma and achieve the supreme state.

The Lord states that He is Kapil Muni amongst the Perfect Souls or the Siddhas.

The Siddhas are those who are possessed of special powers. Those who are endowed with knowledge, detachment and divine attributes from birth are known as Siddhas.

Kapil Muni was possessed of great wisdom since birth. He is considered to be one of the greatest, most eminent sages. The Lord proclaims, “I Myself am that Kapil Muni.”

Little one, in this shloka, the Lord has claimed that He Himself is Narada, Chitrarath – king of the Gandharvas, and Kapil Muni. Thus He clarifies that when one ceases to be identified with just one single body, one is able to identify with all the embodied beings of the world as one’s own.

अध्याय १०

अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:।

गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि:।।२६।।

अब भगवान कहते हैं :

शब्दार्थ :

१. सब वृक्षों में मैं पीपल हूँ।

२. देवर्षियों में मैं नारद हूँ,

३. गन्धर्वों में मैं चित्ररथ हूँ

४. और सिद्धों में मैं कपिल मुनि हूँ।

तत्व विस्तार :

क) पीपल वृक्ष :

– पीपल का पेड़ अतीव पावन माना जाता है।

– पीपल वृक्ष के पत्तों से लेकर जड़ तक, सभी अंश औषध बनाने के काम आते हैं।

– पीपल वृक्ष वैसे भी वायु को पावन करने वाला माना गया है।

– पीपल की गंध से तनो विध्वंसक कीटाणुओं का नाश होता है।

इस कारण भगवान कहते हैं कि यह वृक्ष वह ही हैं।

ख) फिर भगवान कहने लगे कि “देवर्षियों में मैं नारद हूँ।”

देवर्षि नारद :

1. ब्रह्मा के मानस पुत्र भी कहलाते हैं।

2. सम्पूर्ण विद्याओं में विशारद हैं।

3. विभिन्न ढंगों से देवताओं को भी ज्ञान देते हैं।

4. ज्ञानी भक्त होने के नाते भगवान ही हैं।

5. दुष्टों को भी निरासक्त बना देते हैं।

6. त्रिकाल दर्शी तथा सर्वज्ञ हैं।

इस नाते भगवान कहते हैं कि ‘नारद मैं ही हूँ।’

ग) भगवान कहते हैं कि गन्धर्वों में वह चित्ररथ हैं

इन सब का राजा चित्ररथ गन्धर्व है। इन्द्रलोक में जो भी गायन और नाटक विद्या में सर्वोत्तम हैं, उन्हें ‘गन्धर्व’ कहते हैं। भगवान कहते हैं, ‘वह मैं ही हूँ।’

नन्हीं! यह गन्धर्व ही देवताओं का भी जी बहलाते हैं।

यह गन्धर्व ही देवताओं को भी आकर्षित करते हैं।

यह गन्धर्व ही देवताओं को भी मुक्त करते हैं।

सिद्धियाँ भी यह गन्धर्व ही देते हैं।

साधक की परीक्षा भी यह गन्धर्व ही लेते हैं।

जो साधक इन गन्धर्वों की देन रूपा सिद्धि से संग किए बिना सिद्धि के प्रति उदासीन रहता हुआ आत्मा की ओर बढ़ जाए, वह परम पद पाता है।

घ) भगवान कहते हैं सिद्धों में कपिल मुनि वह आप हैं

सिद्ध पुरुष उसे कहते हैं, जिसने बहुत सी सिद्धियाँ पाई हों। जो जन्म से ही ज्ञान, वैराग्य, संन्यास तथा दैवी गुण सम्पन्न हो, उसे सिद्ध पुरुष कहते हैं।

कपिल मुनि जन्मसिद्ध ज्ञानवान् थे। यह सर्वोच्च श्रेष्ठतम मुनि गिने जाते हैं। भगवान कहते हैं ‘यह कपिल मुनि मैं ही हूँ।’

नन्हीं! भगवान ने यहाँ पर नारद, गन्धर्व राज, कपिल मुनि, सबको अपना ही रूप कहा है। वह यही बताना चाह रहे हैं, कि जब आप एक तन में सीमित नहीं रहते तो सृष्टि के पूर्ण तन ही आपके हो जाते हैं।

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