Chapter 10 Shloka 23

रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरु: शिखरिणामहम्।।२३।।

Of the Rudras, I am Shankar;

amongst the Yakshas and the demons

I am the Lord of wealth;

I am Paavak amongst the Vasus

and I am Meru amongst the tall mountains.

Chapter 10 Shloka 23

रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरु: शिखरिणामहम्।।२३।।

Describing His other principal, divine manifestations, the Lord says:

Of the Rudras, I am Shankar; amongst the Yakshas and the demons I am the Lord of wealth; I am Paavak amongst the Vasus and I am Meru amongst the tall mountains.

The Lord says, “I am Shankar amongst the Rudras.”

1. Rudras cause other creatures to weep.

2. They cause pain to others.

3. They trouble people in many ways.

4. They cause many types of sorrow.

Rudras are full of destructive energy. They cause devastation through storms, floods, earthquakes, fire etc.

The Lord says, “I am Shankar amongst the Rudras.” Shankar is an epithet of Lord Shiva. Shiva Himself is symbolic of annihilation and death. On the other hand, He also consumes the poison of the world. He teaches even his devotees to drink this venom. Entwined around His neck dwell venomous serpents. Thus He teaches us to live amongst venomous people with an attitude of detachment. It is Lord Shiva who endows prosperity upon His devotees.

The Lord says, “Amongst Yakshas and demons, I am the Lord of wealth.”

Yaksha

1. Yaksha is another epithet for a servant.

2. The Yaksha serves other people in order to eke out a living.

3. He is subservient to the master who pays him.

4. A Yaksha is a servant who has sold his intellect, his knowledge, his personality, his body – his all to the master who pays him.

Many times, the Lord too dons the form of a Yaksha. The Yaksha fulfils the desires of others and helps them acquire their desired fruit.

Asura – the demon

Asuras are those who:

1. are greedy for wealth;

2. are capable of killing another to gain wealth;

3. destroy other people’s reputation for some economic gain;

4. are willing to obliterate another’s entity for financial gain;

5. believe only wealth to be the most superior objective worthy of attainment;

6. live only to obtain wealth.

The Lord says, “Amongst all these, I am Vitesh, the Lord of wealth.” Vitesh is another name for Kubera – the Supreme Lord of wealth. Thus Kubera is the Lord of all Yakshas and demons.

“I am Paavak amongst the Vasus.”

1. It is the work of the Vasus to purify impurities.

2. Vasus perform the task of guarding the health of the universe.

3. Vasus cleanse the human body of all its impurities.

The Lord says, “Of all the purifiers of the earth, I am fire, Agni.” There is none which can purify like fire. Fire also protects the praanas or the life breath of man.

“I am Meru amongst the mountains.”

The Meru mountain is considered to be the tallest amongst all mountains. According to the Puranas it is so high that all the planets revolve around its peak! It is said that this mountain holds phenomenal troves of gold and precious stones.

So the Lord has acknowledged that:

1. He is the Rudra, the giver of sorrow.

2. He is Kubera, the Lord of wealth who endows wealth in varied measure to all beings.

3. He is fire that purifies all in the universe.

4. He is the highest pinnacle of Meru, from where He can view the entire universe.

अध्याय १०

रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरु: शिखरिणामहम्।।२३।।

अपनी अन्य विभूतियाँ दर्शाते हुए भगवान कहने लगे :

शब्दार्थ :

१. रुद्रों में मैं शंकर हूँ,

२. यक्ष और राक्षसों में मैं धन का पति हूँ

३. और वसुओं में मैं पावक अग्नि हूँ,

४. ऊँचे पर्वतों में मैं मेरु हूँ।

तत्व विस्तार :

भगवान कहते हैं, “रुद्रों में मैं शंकर हूँ।” रुद्र गण प्राणियों को:

क) रुदन कराते हैं।

ख) पीड़ा पहुँचाते हैं।

ग) बहु प्रकार के कष्ट देते हैं।

घ) बहु प्रकार के दु:ख देते हैं।

रुद्र गण विनाशक शक्ति से पूर्ण होते हैं। रुद्र गण आंधी, तूफ़ान, बाढ़, भूचाल तथा अग्नि से विनाश करने वाले होते हैं।

भगवान कहते हैं उन रुद्रों में वह ‘शंकर’ हैं। शंकर शिव का ही नाम है। शिव प्रलय तथा मृत्यु के प्रतीक हैं। शिव स्वयं जग का विष पीने वाले भी हैं। वह अपने भक्तों को भी विष पीना सिखाते हैं। शिव के अपने गले में सर्प लिपटे रहते हैं। वह जीवों को भी विषपूर्ण लोगों में रहते हुए उदासीन रहना सिखाते हैं। भक्तों को समृद्धि देने वाले शिव स्वयं हैं।

भगवान कहते हैं यक्ष और राक्षसों में वह धन के मालिक हैं।

यक्ष :

1. यक्ष नौकर को कहते हैं।

2. यक्ष आजीविका के लिए अन्य जीवों की नौकरी करते हैं।

3. यक्ष अपने धन देने वाले मालिक के अनुचर होते हैं।

4. यक्ष वे नौकर हैं, जिन्होंने अपने धन देने वाले मालिक के लिए मानो अपनी बुद्धि, ज्ञान, व्यक्तित्व तथा तन, सब कुछ बेच दिया हो।

भगवान भी अनेक बार दृष्ट रूप में यक्ष का रूप धर लेते हैं। जीव की अपनी कामनाओं इत्यादि की प्राप्ति तथा कांक्षित फल की उपलब्धि यक्ष ही करवाते हैं।

राक्षस व असुर :

असुर उन्हें कहते हैं :

1. जो धन के लोभी हों।

2. जो धन को प्राप्त करने के लिये लोगों का तन तोड़ देते हैं।

3. जो धन को प्राप्त करने के लिये लोगों का मान हर लेते हैं।

4. जो धन को प्राप्त करने के लिये लोगों का नामोनिशान मिटा देते हैं।

5. जो केवल धन को ही सर्वश्रेष्ठ प्राप्तव्य मानते हैं।

6. जो केवल धन को ही पाने के लिये जीते हैं।

भगवान कहते हैं, “इन सब में धन का मालिक (वित्तेश:) मैं ही हूँ।” वित्तेश: कुबेर को कहते हैं। कुबेर अखिल धनपति कहलाते हैं। कुबेर ही यक्ष तथा राक्षसों के पति कहलाते हैं।

“वसुओं में मैं पावक हूँ।”

क) वसुओं का काम मल की शुद्धि करना है।

ख) वसु सृष्टि को स्वस्थ रखने का काम करते हैं।

ग) वसु जीव के तन को भी मल रहित करते हैं।

भगवान कहते हैं, ‘सम्पूर्ण जहान का मल विमोचन करने वालों में मैं अग्न रूपा मल विमोचक हूँ क्योंकि अग्न के समान पावन करने वाला और कोई नहीं है।’ अग्न प्राणों का भी संरक्षण करती है।

पर्वतों में मेरु

मेरु पर्वत संसार के सम्पूर्ण पर्वतों से ऊँचे शिखर वाला माना गया है। यह पर्वत पौराणिक कथाओं के अनुसार इतना ऊँचा है कि समस्त ग्रह तथा नक्षत्र इसके गिर्द घूमते रहते हैं। कहते हैं इस पर्वत में अनन्त स्वर्ण तथा रत्न भरे हुए हैं।

मानो भगवान ने कहा कि संसार में दु:ख देने वाले रुद्र वह आप हैं। धन के पति, जो सबको विभिन्न मात्रा का धन देते हैं, वह कुबेर भगवान आप हैं। सृष्टि में सब को पावन करने वाला अग्न भी वह आप हैं। सबसे ऊँचा शिखर, जहाँ से मानो सम्पूर्ण सृष्टि को वह देख सकते हैं, वह मेरु भी वह आप ही हैं।

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