Chapter 10 Shloka 21

आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।

मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी।।२१।।

I am Vishnu amongst the Adityas,

I am the radiant sun amongst the luminaries,

I am Marichi amongst the Maruts

and amongst the planets, I am the moon.

Chapter 10 Shloka 21

आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।

मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी।।२१।।

The Lord says:

I am Vishnu amongst the Adityas, I am the radiant sun amongst the luminaries, I am Marichi amongst the Maruts and amongst the planets, I am the moon.

The Lord, the Atma Itself, says, “I am Vishnu amongst the Adityas.”

Aditya

The sons of Aditi are called Adityas.

1. Prakriti is also known as Aditya.

2. The mother of the devtas or deities is also called Aditya.

3. The protector of the earth is Aditya.

4. The protector of the skies is called Aditya.

5. The creative energy is known as Aditya.

Prakriti has, so to say, been divided into twelve powers which create and control the various components of the universe. These twelve constituents are guardians of Aditi – the giver of luminosity. Vishnu is known to be the cardinal Lord of all the Adityas. He is the sustainer and nourisher of the universe. He is the protector of those aspirants who seek light. He is the Lord of the subtle world and sustains all living beings. He is the Lord of all minds.

The Lord says, “I am this Vishnu. That is, I guard the light of the world.”

He Himself is the radiant sun amongst all luminous bodies. That is, not only is He all the luminous bodies that bestow light to the world, but He is their principal luminary – the sun. All the constituent rays of the sun are verily He. The light which irradiates the world is the Lord. The light that enables the individual’s eyes to see, is also the Lord Himself. He is the mainstay of the power of sight.

The Lord now says, “I am Marichi amongst the Maruts.”

a) The Maruts are the different aspects of the wind.

b) The wind underlies every movement.

c) The wind is latent in every storm.

d) The wind permeates the individual as his praan or life breath.

e) It pervades the mind as its thoughts.

f) It is the energy that facilitates the power of hearing.

g) It enables rain.

h) It dons the form of mist.

All these forms of the wind are manifestations of Marut. Marichi is known to be the principal Marut. Marichi is also another epithet for Prajapati or the Overlord of all deities. Thus one can say, Marichi is the energy that bestows life. The Lord proclaims, “I am Marichi – the Lord of the winds.”

I am the moon amongst the planets

The Lord proclaims that He is the moon – the principal and most powerful heavenly body that rules over our world.

Little one, in other words the Lord is saying:

1. It is I who constitutes all that is transpiring in the gross universe.

2. I am all these powers of Prakriti that you perceive.

3. I constitute all the energies of Prakriti which you may not perceive as energy, but whose effect you witness in the world.

It is enough for the sadhak or the spiritual practicant to believe that all is the Supreme Lord.

The Lord is explaining the convergence of this entire creation in the Atma. He is showing us the divided reality of the otherwise Indivisible and Eternal Essence. In other words He is explaining the world in terms of the ‘dream’ of Brahm.

अध्याय १०

आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।

मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी।।२१।।

भगवान कहते हैं कि :

शब्दार्थ :

१. आदित्यों में मैं विष्णु हूँ, (विष्णु के लिये देखिये ११/३०, ४६)

२. ज्योतियों में मैं किरणों वाला सूर्य हूँ,

३. मरुतों में मैं मरीचि हूँ

४. और नक्षत्रों में मैं चन्द्रमा हूँ।

तत्व विस्तार :

आत्म स्वरूप भगवान कहने लगे कि “आदित्यों में मैं विष्णु हूँ।”

आदित्य:

अदिति के पुत्रों को आदित्य कहते हैं।

1. प्रकृति को भी आदित्य कहते हैं।

2. देवताओं के जन्म दाता को आदित्य कहते हैं।

3. धरती के संरक्षक को भी आदित्य कहते हैं।

4. आकाश के संरक्षक को भी आदित्य कहते हैं।

5. उत्पन्न करने वाली शक्ति को भी आदित्य कहते हैं।

प्रकृति का विभाजन मानो बारह शक्तियों में हुआ, जो सृष्टि के विभिन्न अंगों का नियन्त्रण तथा निर्माण करती हैं। यह अंग अधिकांश ज्योति देने वाले अदिति अंश के रखवाले हैं। आदित्यों में सर्व प्रधान देवता वष्णु माने गये हैं। विष्णु सृष्टि का पालन पोषण करने वाले हैं। सृष्टि में ज्योति के अभिलाषी तपस्वियों का संरक्षण करने वाले हैं। विष्णु जीवों का पालन पोषण करने वाले और सूक्ष्म सृष्टि के पति भी कहलाते हैं। वह मनों पर राज्य करने वाले भी हैं।

भगवान कहते हैं, ‘यह विष्णु मैं ही हूँ। यानि, सृष्टि में ज्योति का संरक्षक मैं ही हूँ।’ ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य वह आप हैं। यानि सम्पूर्ण ज्योति कर और प्रकाश देने वाले पदार्थ वह आप हैं, उन सबमें जो महा ज्योतिपूर्ण सूर्य है, वह भगवान ही हैं; सूर्य की सम्पूर्ण किरणें भगवान ही हैं। जिस ज्योति के आसरे जीव संसार को देखता है, वह भी भगवान ही हैं। आँखों के आन्तर में जो ज्योति वास करती है, जिस राही सब जग देख सकता है, वह भगवान ही हैं, यानि, दर्शन शक्ति का आधार भगवान ही हैं।

अब भगवान कहते हैं कि, “मरुतों में मैं मरीचि हूँ।”

क) वायु के विभिन्न अंगों को मरुत कहते हैं।

ख) हर एजना में वायु रहती है।

ग) हर तूफ़ान में वायु रहती है।

घ) वायु जीव के प्राण बन कर रहती है।

ङ) वायु जीव के मन के उद्गार बन कर रहती है।

च) वायु ही श्रवण शक्ति बन जाती है।

छ) वायु ही वर्षा में सहयोग देती है।

ज) वायु ही धुन्ध बन जाती है।

वायु के यह विभिन्न रूप मरुतों के ही रूप हैं। मरीचि वायु में सर्वश्रेष्ठ वायु को कहते हैं। मरीचि प्रजापति को भी कहते हैं, इस नाते मरीचि प्राणदे शक्ति को कह लो। भगवान कहते हैं, ‘वायु पति मैं ही हूँ।’

फिर भगवान कहते हैं, “नक्षत्रों में मैं चन्द्रमा हूँ।”

पूर्ण नक्षत्र जो आकाश में दिखते हैं और जो पूर्ण सृष्टि पर राज्य करते हैं, भगवान कहते हैं, कि उनमें सर्वशक्तिमान् चन्द्रमा वह ही हैं।

नन्हीं! यह सब कह कर भगवान इतना ही कह रहे हैं कि :

1. ‘स्थूल सृष्टि में जो भी हो रहा है, वह सब मैं ही हूँ।

2. प्रकृति की सम्पूर्ण शक्तियाँ जो तुम देखते हो, वह मैं ही हूँ।

3. प्रकृति की सम्पूर्ण शक्तियाँ, जो तुम नहीं देख सकते हो, किन्तु जिनके कार्य तुम देखते हो, वह सब मैं ही हूँ।’

साधक के लिए इतना मान लेना ही काफ़ी है कि यह जो भी है, सब परमात्मा ही है।

यहाँ भगवान सम्पूर्ण सृष्टि का आत्मा में एकत्व का राज़ समझा रहे हैं। वह अखण्ड, अविभाजनीय तत्व का विभाजित सा हुआ तत्व दर्शा रहे हैं। क्यों न कहें, यहाँ भगवान ब्रह्म की स्वप्नाकार वृत्ति रूप सृष्टि को दर्शा रहे हैं।

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