अध्याय १०
श्री भगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतय:।
प्राधान्यत: कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे।।१९।।
अर्जुन की प्रार्थना सुन कर भगवान कहने लगे:
शब्दार्थ :
१. हे कुरु श्रेष्ठ अर्जुन! अच्छा,
२. अब मैं तेरे लिए,
३. अपनी प्रधान प्रधान दिव्य विभूतियाँ कहूँगा,
४. क्योंकि मेरी (विभूतियों के),
५. विस्तार का अन्त नहीं है।
तत्व विस्तार :
करुणा पूर्ण तथा भक्त वत्सल भगवान ने अर्जुन की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए कहा कि :
क) मैं तुम्हारे लिए अपनी प्रधान प्रधान विभूतियों को बताता हूँ।
ख) मैं तुझे उन विषयों की बात बताता हूँ, जहाँ मेरे विशेष दिव्य गुण तुम जान सकते हो।
किन्तु यह पूर्ण ब्रह्माण्ड मेरी दिव्य विभूतियों से भरपूर है। उन सबका बताना तो सम्भव नहीं, उनमें से कुछ मुख्य विभूतियाँ बताता हूँ। इनके अन्दर जो निहित तत्व है, यदि तू उसे समझ जाए तो शायद मुझे जान जाए।