Chapter 9 Shloka 28

शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै:।

संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।।२८।।

With mind established in the Yoga of renunciation,

such a one is freed from the bonds of karma

and from their good and evil fruits.

Thus freed, he will attain Me.

Chapter 9 Shloka 28

शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै:।

संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।।२८।।

Kamla, the Lord now states that whosoever offers all actions unto Him, attains Him.

With mind established in the Yoga of renunciation, such a one is freed from the bonds of karma and from their good and evil fruits. Thus freed, he will attain Me.

One imbued with Sanyas Yoga

1. Once all actions have been offered unto the Supreme Lord, sanyas will inevitably happen.

2. When all mental tendencies are focused on the Lord, vairaagya is inevitable.

3. When love for the Lord is established, this body will belong to Him.

Such an aspirant will become a Sanyasi and a Yogi. It is important to remember that akarma or inaction is not the renunciation of action, but the eradication of attachment with the fruit of action.

a) Akarma does not connote lack of action.

b) Akarma is the surrender of action unto the Lord.

c) The complete annihilation of attachment to action is akarma.

d) Selfless action is akarma.

e) If love for the Truth occurs, if you wish to become an Atmavaan, if you wish to renounce the body idea, if you wish to renounce attachment, each action of yours will become a selfless deed. Because then there will be no question of striving for self-establishment through any particular deed. You will then do nothing for the furtherance of your bodily interests, your status, your own happiness, your recreation etc.

What remains will be pure yagya – each deed will be an offering unto the Lord. Then of what consequence are the fetters of action, the good or evil fruits of action? All these will be offered to the Lord, to Ram Himself.

Little one, now understand this from the Atma’s point of view.

a) This ‘I’ and ‘mine’;

b) claiming the body;

c) claiming the attributes of the body;

d) claiming the actions of the body;

e) claiming the aberrations of the mind;

all these are merely veils of ignorance.

If one renounces these veils, what remains will be the pure Atma in essence. The Lord has merely told us to give Him these polluted thoughts which augment ignorance. Little one, the Lord is merely asking for the illusion that veils the individual.

अध्याय ९

शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै:।

संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।।२८।।

कमला मेरी जान्! अब भगवान बताते हैं कि सब कर्म मुझ पर अर्पित करने वाले मुझे ही पाते हैं।

शब्दार्थ :

१. इस प्रकार जिसका मन संन्यास योग से युक्त हुआ हो,

२. वह शुभ अशुभ फलों से,

३. और कर्म बन्धन से मुक्त हो जायेगा,

४. और उनसे विमुक्त हुआ मेरे को प्राप्त होगा।

तत्व विस्तार :

संन्यास योग युक्त :

1. जब सम्पूर्ण कर्म परम पर अर्पित कर दिये तो संन्यास हो ही गया।

2. जब सम्पूर्ण मनोवृत्तियाँ भगवान में लग गई तो वैराग्य हो ही गया।

3. अरे! प्रीत हुई भगवान से तो तन उनका हो ही गया।

ऐसा साधक योग युक्त संन्यासी हो ही गया। ध्यान रहे, कर्म से संन्यास अकर्म नहीं। कर्म फल से संन्यास ही अकर्म है।

क) अक्रियाशील होना अकर्म नहीं होता।

ख) कर्मों को अर्पित कर देना ही अकर्म हैं।

ग) कर्मों के प्रति संग का नितान्त अभाव ही अकर्म है।

घ) निष्काम कर्म ही अकर्म है।

ङ) सत् से प्रीत गर हो जाये, गर तू आत्मवान् बनना चाहे, गर तू तनत्व भाव त्यजना चाहे, गर तू संग भी त्यजना चाहे तो तेरा हर कर्म स्वत: निष्काम ही होगा। तब किसी कर्म राही अपनी स्थापना की बात ही नहीं रहेगी। तब अपने तन के लिये, अपने मन के लिये, अपने सुख के लिये, अपने मनोरंजन के लिये तुम कुछ नहीं करोगे।

बाकी भगवद् परायण यज्ञ ही रह जायेगा। फिर कर्म बन्धन क्या, शुभ अशुभ फल क्या; सब राम का ही हो जायेगा।

नन्हीं! इसे आत्मा के दृष्टिकोण से समझ :

क) यह मैं और मेरा,

ख) तन को अपनाना,

ग) तन के गुणों को अपनाना,

घ) तन के कर्मों को अपनाना,

ङ) मन के विकारों को अपनाना,

केवल अज्ञान पूर्ण आवरण ही है।

यदि इन आवरणों को त्याग दिया जाये तो जो बाकी रह जायेगा, वह केवल विशुद्ध आत्म तत्व ही है।

भगवान ने तो केवल इतना कहा है कि यह मल युक्त तथा अज्ञान वर्धक भाव उन्हें दे दो।

नन्हीं! भगवान केवल जीव का मिथ्यात्व माँग रहे हैं।

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