अध्याय ७
न माँ दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा:।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता:।।१५।।
अब भगवान कहते हैं :
शब्दार्थ :
१. किन्तु माया द्वारा हरे हुए ज्ञान वाले,
२. आसुरी स्वभाव का आश्रय लिये हुए,
३. मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले मूढ़ लोग, मेरे को नहीं भजते हैं।
तत्व विस्तार :
माया द्वारा हरे हुए, ज्ञान रहित लोग तथा आसुरी स्वभाव को धारण किये हुए लोग कैसे होंगे, पहले यह समझ ले।
नन्हीं! जो केवल अपने तन से आसक्त होते हैं और पूर्ण जीवन का बल अपने को स्थापित करने में ही लगा देते हैं, वे आसुरी स्वभाव वाले, यानि रजोगुण और तमोगुण परायण लोग आसुरी वृत्ति वाले होते हैं।
आसुरी स्वभाव का आसरा लिये वे लोग,
1. अहंकार, दम्भ, दर्प पूर्ण होते हैं।
2. काम, तृष्णा और लोभ पूर्ण होते हैं।
3. क्रूर कर्म करने वाले होते हैं।
4. निर्दयी तथा अत्याचारी होते हैं।
5. दया, धैर्य तथा कर्तव्य को नहीं पहचानते।
6. क्रोधी होते हैं।
7. स्वार्थी, द्वेषपूर्ण तथा मिथ्याचारी होते हैं।
8. घृणा, तिरस्कार और धृष्टता पूर्ण होते हैं।
9. औरों के प्रति उदासीन होते हैं।
10. औरों के प्रति कृतघ्न होते हैं।
11. वैमनस्यपूर्ण, शत्रुता पूर्ण होते हैं।
12. ईर्ष्या पूर्ण लोग होते हैं।
ये लोग :
– कभी भी तृप्त नहीं होते।
– द्वन्द्व पूर्ण विकारों से भरे हुए होते हैं।
– बुरे तथा दूषित कर्म करने वाले होते हैं।
भगवान कहते हैं कि ‘ये लोग मेरा भजन नहीं करते हैं।’
यानि, इन लोगों के जीवन में,
क) दया या धर्म की कोई जगह नहीं होती।
ख) न्याय का कोई स्थान नहीं होता।
ग) निष्काम कर्म का सवाल ही नहीं होता।
घ) शुभ कर्म का भी सवाल ही नहीं होता।
ङ) दूसरा भी इन्सान है, ऐसा भाव ही नहीं उठता।
इनमें दैवी गुणों का लेश मात्र नहीं होता।
ऐसे लोग मेरा भजन कैसे करेंगे?