अध्याय ४
यस्य सर्वे समारम्भा: कामसंकल्पवर्जिता:।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहु: पण्डितं बुधा:।।१९।।
अब भगवान तत्व स्थित पण्डित के विषय में कहते हैं कि :
शब्दार्थ :
१. जिसके सम्पूर्ण कर्मों का आरम्भ कामना और संकल्प से वर्जित है,
२. उस ज्ञान अग्न से भस्म हुए कर्मों वाले को,
३. तत्व वेत्ता गण पण्डित कहते हैं।
तत्व विस्तार :
भगवान कहते हैं जिसके कर्म आरम्भ होने से पहले ही कामना और संकल्प से वर्जित होते हैं, वह पण्डितगण होते हैं।
नन्हीं! इसे समझने के यत्न करो। कर्म आरम्भ होने से पहले ही कामना और संकल्प से वर्जित कर्म कौन से होंगे?
काम संकल्प रहित कर्म :
1. जो कर्म अपनी किसी कामना अथवा चाहना से प्रेरित न हों।
2. जो कर्म चाहना पूर्ति अर्थ प्रेरित न हों,
3. जो कर्म अपनी तृप्ति से भी प्रेरित न हों,
4. जो अपने किसी भी प्रयोजन अर्थ आरम्भ न हों, तथा जिन कर्मों की योजना पहले से न बनाई गई हो।
5. जिन कर्मों की योजना या प्रयोजन आपके संकल्प में भी नहीं आया।
6. जिन कर्मों की योजना का प्रयोजन आप अपने सुख या स्थापति के लिये संकल्पित नहीं करते।
नन्हीं! ऐसे कर्म अपनी कामना या संकल्प से उत्पन्न नहीं होंगे क्योंकि आत्मवान् पण्डित अपनी देहात्म बुद्धि को त्याग चुके होते हैं।
क) उन्हें किसी भी कार्य के आरम्भ में अपने तन का ध्यान नहीं रहता और अपने तन का हित याद ही नहीं रहता।
ख) नन्हीं! वह अपने तन के हित की बात सोच ही नहीं सकते।
ग) उनका अपना भला किस में है और किस में नहीं, इस बात को तो वे भूल ही चुके होते हैं।
घ) उनका भला या संरक्षण कोई और कर दे तो कर दे, वे तो अपने प्रति प्रगाढ़ निद्रा में सोये होते हैं।
ङ) उनका सुख कोई और देख ले तो देख ले, वे तो अपने आपको भूल चुके होते हैं।
ऐसे लोग संकल्प क्या करेंगे? वे अपनी कामना को कब याद रखेंगे? वे तो मानो ज्ञान की अग्न से अपने सम्पूर्ण कर्म तथा तनत्व भाव जला चुके हैं। वे तो मानो गुण ज्ञान की विवेक अग्न में, गुणों के प्रभाव को ही जला चुके हैं। वे तो मानो आत्मज्ञान की अग्न में व्यक्तिगत करने वाली ‘मैं’ को जला चुके हैं।
ऐसे जीव नितान्त संग रहित होते हैं। उनके कर्म तो, जो उनके सम्पर्क में आये, उसके प्रयोजन तथा योजनाओं से प्रेरित होते हैं। तत्ववित् लोग उन्हें ‘पण्डित’ कहते हैं।