अध्याय ३
इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्।।४०।
अब भगवान कहते हैं कि :
शब्दार्थ :
१. इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि, यह कामना के अधिष्ठान कहे जाते हैं।
२. इन तीनों के द्वारा ज्ञान को आवृत करके,
३. यह काम देही को मोहित करता है।
तत्व विस्तार :
भगवान कहते हैं कि :
क) काम का निवास स्थान मन, बुद्धि और इन्द्रियाँ ही है।
ख) काम अपने कार्यक्रम के लिये इनका आश्रय लेता है।
ग) काम का विषय, तथा उपभोग का भोग स्थान भी यही है।
घ) कामना पूर्ण कर्म भी इन्हीं के द्वारा प्रेरित होते हैं।
ङ) कामना का राज्य भी इन्हीं तीनों पर हो जाता है।
च) कामना का आश्रय स्थान भी यही तीनों है।
छ) इन सबको फिर कामना ही कर्मों में प्रेरित करती है।
ज) कामना प्रधान बुद्धि तब कामना पूर्ति की विधि बताती है।
झ) कामना में रत मन अपनी ही बुद्धि को उत्तेजित करता रहता है।
ञ) कामना से प्रेरित ज्ञानेन्द्रियाँ जग में जाकर अपने प्रिय या वांछित विषय का ज्ञान लेकर आती हैं।
ट) फिर कर्मेन्द्रियाँ कामना की पक्षपाती बुद्धि के निर्णय को संसार में निभाती हैं।
ठ) मन, बुद्धि तथा ज्ञानेन्द्रियों के सहयोग से, कामना कर्मेन्द्रियों पर चढ़ कर विषय उपलब्धि को जाती है।
तुम ही बताओ नन्हीं! जब मन और बुद्धि, इन्द्रियों सहित कामना के चाकर हो जायें, तो जीवात्मा मोहित हो ही जायेगा!
1. तब ज्ञान क्या विचार कर सकता है?
2. तब नन्हीं सी सत् की पुकार भी केवल धीमी ही नहीं पड़ जाती, बल्कि बुझ जाती है।
3. तब जीव मानो सत्य के प्रति मूर्छित हो जाता है।
4. तब जीव भ्रष्ट कर्म युक्त हो जाता है।
5. तब जीव कहता कुछ और है, करता कुछ और ही है, निहित चाहना उसकी कुछ और ही होती है।
6. अन्धे आत्म विश्वास का जन्म भी कामना राही ही होता है।
स्थूल विषय प्रधानता का परिणाम :
नन्हीं!
क) तब जीवन में स्थूल और जड़ विषय की प्रधानता होती है।
ख) जड़ विषय से तद्रूपता चाहने वाले अन्धे होते हैं।
ग) जड़ विषय के चाकर बनने वाले अन्धे ही होते हैं।
घ) जड़ विषय को ठाकुर मानने वाले बहुत भीषण कर्म करते हुए भी जड़ ही होते हैं।
ध्यान से देख! ये जड़ विषय को इन्सान से कहीं अधिक मूल्य देते हैं, ये काम को भगवान से भी कहीं अधिक मूल्य देते हैं।