Chapter 3 Shloka 33

सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।

प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति।।३३।।

All people are subject to laws of nature.

Even a wise man acts according to his nature.

What can you gain through

repression of your natural qualities?

Chapter 3 Shloka 33

सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।

प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति।।३३।।

All people are subject to laws of nature. Even a wise man acts according to his nature. What can you gain through repression of your natural qualities?

Every individual possesses gunas received from nature. A man of wisdom is no different in this respect. He, too, has to strive in accordance with his natural talents.

The Lord says:

1. Do not suppress your gunas.

2. Do not squander the qualities bestowed upon you by Nature.

3. Why do you crush or destroy those attributes?

4. Why do you try to imprison them?

5. Why do you wish to act in opposition to your natural tendencies?

Why not utilise those talents selflessly for the good of others?

a) Even men of wisdom strive in accordance with their gunas. The only difference is that they engage in selfless actions with complete detachment.

b) They do nothing to establish their body selves yet they use all their energies in rendering help to others.

c) They do not use their gunas for promoting the interest of their own body yet they utilise all their energies and qualities to strive as ordinary people do.

Little one, you have no inborn right over the gunas given to you by nature, but the world does. If you aim to become an Atmavaan:

1. Give your body along with its talents and attributes for the benefit of others.

2. Let there be no element of doership in any of your deeds.

3. Safeguard and foster the attitude of selflessness in all actions performed by the body.

4. Renounce all claims on others.

5. Yet be careful not to forsake those who have claims on you!

a) If you practice giving up the identification with your body, you will no longer be influenced by your own gunas nor by those of others. You will then become a gunatit.

b) Divine qualities will then flow through you.

c) Your intellect will become tranquil and you will achieve the state of a sthit pragya i.e. one possessed of a pure intellect.

In course of time you will forget your own body and become an Atmavaan, a Realised Soul.

अध्याय ३

सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।

प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति।।३३।।

देख नन्हीं! भगवान कहने लगे हैं कि :

शब्दार्थ :

१. सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्त करते हैं।

२. ज्ञानवान् भी अपनी प्रकृति के सदृश चेष्टा करता है,

३. फिर ज़बरदस्ती गुण दमन करने से क्या होगा?

तत्व विस्तार :

नन्हीं! भगवान कहने लगे कि प्रत्येक जीव में प्रकृति के दिये हुए गुण हैं। ज्ञानवान् को भी प्रकृति ने गुण दिये हैं और ज्ञानवान् को भी प्रकृति के दिये हुए गुणों के अनुकूल चेष्टा करनी पड़ती है।

देख! ध्यान से सुन! भगवान कहते हैं :

1. अपने गुणों का दमन न कर देना।

2. अपने गुणों को नाहक गंवा न देना।

3. अपने गुणों को कुचलने के यत्न क्यों करते हो?

4. अपने गुणों को कैद करने के क्यों यत्न करते हो?

5. अपने गुणों को नष्ट करने अथवा मिटाने के यत्न क्यों करते हो?

6. अपने गुणों के स्वभाव के विरुद्ध क्यों जाना चाहते हो?

7. प्रकृति ने आपको निहित रूप में जो शक्ति दी है, उसे क्यों व्यर्थ गंवाना चाहते हो?

आपको प्रकृति ने जो गुण दिये हैं, निष्काम भाव से उन्हीं गुणों द्वारा आपका तन दूसरों के काम क्यों नहीं आता?

क) ज्ञानवान् जन भी अपने गुणों के अनुसार चेष्टा करते हैं, भेद इतना है कि वह निरासक्त हुए, निष्काम कर्म करते हैं।

ख) वह अपनी स्थापना के लिये कुछ नहीं करते, यथाशक्ति औरों के लिये सब करते हैं।

ग) वह अपने तन के कारण अपने गुण इस्तेमाल नहीं करते, वह तो सम्पूर्ण गुणों सहित, अपने तन के प्रति ममत्व भाव त्याग कर, साधारण लोगों के समान ही काज करते हैं।

नन्हीं! प्रकृति के दिये हुए गुणों पर अपना अधिकार तो नहीं है किन्तु इस संसार का पूर्ण अधिकार है। गर तू सच्ची साधिका है और आत्मवान् बनना चाहती है, तो :

1. गुण सहित अपना तन लोगों को दे दे।

2. तन जो भी करे उसमें कर्तापन का भाव न आने दे।

3. तन जो भी करे उसमें निष्कामता का नित्य संरक्षण करते रहना।

4. लोगों पर जो तुम्हारे अधिकार हैं उन्हें छोड़ दो।

5. तनत्व भाव अभाव का अभ्यास करोगे तो तुम्हारे तन पर जो भी अपना अधिकार समझता है, उसे न छोड़ देना।

क) अपने गुणों से और दूसरों के गुणों से अप्रभावित हो ही जाओगे, यानि गुणातीत हो ही जाओगे।

ख) तत्पश्चात् आपके आन्तर से दैवी सम्पदा बह ही जायेगी।

ग) फिर बुद्धि शान्त हो जायेगी और आप स्थित प्रज्ञ बन ही जाओगे।

फिर जब अपने तन को भूल जाओगे, तो आत्मवान् बन जाओगे।

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