अध्याय २
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण:।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम्।।५१।।
भगवान बुद्धि की राही योग की विधि बता कर कहते हैं, तू भी ऐसा ही कर!
शब्दार्थ :
१. बुद्धियुक्त ज्ञानी जन कर्मों से उत्पन्न
२. फल को त्याग कर जन्म मरण से मुक्त हुए,
३. निर्दोष पद को प्राप्त होते हैं।
तत्व विस्तार :
फिर से भगवान कह रहे हैं कि :
1. बुद्धि से युक्त होकर जीव कर्मफल का त्याग करते हैं।
2. कर्मफल को त्याग कर जीव जन्म मरण के चक्र से तर जाते हैं।
नन्हीं! जैसे पहले भी कह कर आये हैं, बुद्धि गर भली प्रकार तन को जान ले और ‘मैं तन नहीं हूँ’ इसका राज़ जान ले, तो वह अपने मन को मना सकती है और शनै: शनै: जीवन में कर्मों के राही अभ्यास करती हुई आपको तनत्व भाव से परे रखती है।
कर्म करते समय यही याद रखना चाहिये कि ‘मैं तन नहीं हूँ’ और ‘यह तन मेरा नहीं है।’ ज्यों ज्यों यह भाव आपके हृदय में परिपक्व होता जायेगा, आप स्वत:
1. कर्मफल की ओर ध्यान नहीं रखेंगे।
2. निष्काम कर्म करने शुरू कर देंगे।
3. आपका जीवन शनै: शनै: निर्दोष होने लग जायेगा।
4. आपका मोह धीरे धीरे कम होने लगेगा।
5. तन का कर्तृत्व भाव भी छूटने लगेगा।
6. जब तन अपनाना बन्द होने लगेगा, तब आप अपना रूप भी भूलने लगेंगे।
7. जब आप इसकी पराकाष्ठा तक पहुँचेंगे तब जन्म मरण के बन्धन से स्वत: छूट जायेंगे, क्योंकि जब आप अपने तन को ही अपना नहीं मानेंगे तो आप अपने जन्म को अपना कैसे मानोगे? अपने मनो कर्म को अपना कैसे मानोगे? संग ही जन्म मरण के बीज में प्राण भरता है।
राग :
1. राग ही जन्म मरण का कारण है।
2. राग ही मोह और अज्ञान का मूल कारण है।
3. राग ही जीव को जीवत्व भाव से बाँधता है।
4. राग ही जीव को तनत्व भाव से बाँधता है।
5. राग ही जीव को कर्तृत्व भाव से बाँधता है।
6. राग के कारण ही जीव तन के गुणों के तद्रूप हो जाते हैं।
7. राग के कारण ही जीव तन के गुणों को अपना मानने लगते हैं।
8. राग के कारण ही जीव का ज्ञान नष्ट हो जाता है।
9. राग के कारण ही जीव जहान में इतना अनिष्ट करते हैं।
गर संग ही न रहे तो जीव जीते जी तर जाये और तनत्व भाव से उठ जाये। इसी संग को मिटाने के लिये ज्ञान चाहिये, इसी संग को मिटाने के लिये बुद्धि चाहिये। हमारा संग मिथ्यात्व से हो गया है, यह संग अब आत्मा से करना है और फिर आत्मा में लय हो जाना है। पूर्ण शास्त्र ज्ञान तथा साधना मार्ग इसी तनो तद्रूप कर संग को मिटाने की ही बातें कहते हैं।
यह संग मिटे तो परम में टिके, बस इतना ही कहा श्याम ने।