अध्याय २
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात् सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।३०।।
भगवान फिर से अर्जुन को कहते हैं :
शब्दार्थ :
१. अर्जुन! यह जीवात्मा
२. सबकी देह में सदा अवध्य है।
३. इसलिये सम्पूर्ण भूतों के लिये,
४. तुम्हारा शोक करना उचित नहीं।
तत्व विस्तार :
हे नन्हीं जान्! भगवान बार बार, विविध विधि मानो अर्जुन को मना रहे हैं और समझा रहे हैं, ताकि:
1. वह जो अत्यन्त शोक से ग्रसित हो गया है, शोक विमुक्त हो जाये।
2. वह जो मोह ग्रसित हो गया है, उस मोह से नजात पा ले।
3. वह जो अपना स्वभाव भूल गया है, उसमें पुन: टिक जाये।
4. वह जो ज्ञान के आसरे अज्ञानपूर्ण पथ लेना चाह रहा है, उस पथ का अनुसरण न करे, यानि युद्ध से मुख न मोड़ ले।
5. वह जो कायर बन गया है, वह अपनी कायरता छोड़ दे।
इस कारण भगवान अर्जुन के लिये विभिन्न प्रकार से वही बात दोहराते जा रहे हैं।
अब कहते हैं कि आत्मा सबकी देह में है और आत्मा को कोई नहीं मार सकता; आत्मा को कोई नहीं काट सकता।
अब भगवान समझा रहे हैं कि जो लोग तुम्हारे सामने युद्ध की चाहना को लिये खड़े हैं, वह भी नहीं मरेंगे। वह भी नहीं मारे जा सकते। यानि, उनका आत्मा अवध्य है, उनकी मौत का भी तू शोक न कर।
क) केवल तन मर जायेगा उनका, किन्तु आत्मा उनकी भी अमर है।
ख) केवल तन के गुण मिट जायेंगे और वह पाप नहीं कर सकेंगे।
ग) अधर्म करने वाले नहीं रहे, तो अधर्म मिट जायेगा।
देह मिट जायेंगे, देही तो नहीं मिट सकते। इसलिये साधक!
1. तू भी अपनी जान की बाज़ी लगा दे।
2. तुझे भी अपना मोह शोभा नहीं देता।
3. तुझे भी अपना आन्तरिक मिथ्यात्व शोभा नहीं देता।
4. तू भी अपने सहज आत्म स्वरूप में आकर स्थित हो जा।
5. तू अपनी ‘मैं’ से ही युद्ध कर और अपनी ही दुर्वृत्तियों का हनन कर दे।
नन्हीं! साधक के लिये यह युद्ध आन्तरिक युद्ध का प्रतीक है, इसलिये तुझे कहते हैं कि ‘तू आत्मा है, घबराती क्यों है?’
क) छोड़ अपनी मिथ्या मान्यता और आत्मा से प्रीत लगा ले।
ख) तनत्व भाव कुछ पल के लिये छोड़ कर देख तो सही, घबरा नहीं।
ग) संग को कुछ पल के लिये छोड़ कर देख तो सही, घबरा नहीं।
घ) अपनी चाहनाओं को कुछ पल के लिये छोड़ कर देख, घबरा नहीं।
ङ) जीवन यज्ञमय बना के देख, घबरा नहीं।
च) यह मनोकामनायें तथा वृत्तियाँ, जो तुम कहती हो तुम्हारी राहें रोकती हैं, उनकी परवाह न कर, तू तो आत्मा है! यह तन और मन तो नहीं!
नन्हीं आभा! तू अपने आपको आत्मा मान कर,
1. आज से दैवी गुण का अभ्यास करना आरम्भ कर दे।
2. आज से अपने मन से सब गिले शिकवे और राग द्वेष निकाल दे।
3. आज से अपने ही सद्गुणों पर गुमान करना छोड़ दे।
4. आज से किसी के बुरे गुणों के लिये भी उससे नफ़रत करनी बन्द कर दे।
5. आज से अपने नातों रिश्तों पर से अपना अधिकार छोड़ दे।
6. आज से अपने नाते रिश्तों पर रोब जमाना छोड़ दे।
7. अपने फ़र्ज करती जा, अपने हक़ छोड़ दे।
8. मान अपमान तन का होता है, तू आज तन से नाता ही तोड़ दे।
9. हानि लाभ तन के नाते ही होते हैं, आज से इनकी परवाह न कर।
भगवान ने जो भी कहा, उसमें संतुष्ट रहा कर। अपने तन से नाता तोड़ कर भगवान से नाता जोड़ लो।
नन्हीं! भगवान का धन जीवन में इस्तेमाल कर। सत्य, न्याय, प्रेम, करुणा, इनसे बड़ा धन कौन सा होगा? जो इस धन का धनी है, वह शहंशाह है।