Chapter 1 Shloka 22

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे।।२२।।

Arjuna asked to have his chariot

brought between the two armies:

So that I can clearly see

those warriors desirous of war;

and that I may ascertain whom I must fight

in this business of war.

Chapter 1 Shloka 22

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे।।२२।।

Arjuna asked to have his chariot brought between the two armies:

So that I can clearly see those warriors desirous of war; and that I may ascertain whom I must fight in this business of war.

Arjuna wants to see:

a) which warriors he has to contend with;

b) which warriors were fighting for the unjust Duryodhana;

c) who are the supporters of the Kauravas who had snatched away the rights of the Pandavas;

d) what weapons his opponents were wielding.

Arjuna wanted to be clear as to whom it would behove him to fight; he wished to plan his strategy for battle depending on the strength and prowess of his opponents so that he could make the best use of his own resources.

After determining his goal, a seeker too must act likewise

1. He must clearly inspect the ingredients of sadhana that are in his possession.

2. He should clearly assess his strength of endeavour.

3. He should know the qualities he must imbibe.

4. He should understand the strong and stubborn nature of his negative qualities needing eradication.

5. He should know the tenacity of his mental desires.

6. He should recognise his moha and his attachments, including his attachment to his own body.

Little one!

a) Clearly observe your positive and negative attributes.

b) Also take stock of how dear your goal is to you.

c) Is your reputation dearer to you than the Lord Himself?

d) Does justice take precedence over your dear ones and close relations?

e) Do you love the qualities of the Lord or do you beg for love?

f)  Will you love only the one who is congenial to you or is your love unconditional?

g) Do you wish to learn detachment from your own self or do you wish to be detached from others?

See all this clearly and then see the obstacles that hinder your path. Only then can you embark on the battle of life or of spiritual endeavour.

अध्याय

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे।।२२।।

अर्जुन ने दोनों सेनाओं के मध्य में रथ खड़ा करने को कहा :

शब्दार्थ :

१. (जिससे) मैं,

२. इस युद्ध की कामना से खड़े हुए योद्धाओं को,

३. अच्छी प्रकार देख लूँ; कि,

४. इस युद्ध रूपा व्यापार में,

५. मेरा किन किन से युद्ध करना उचित है।

तत्व विस्तार :

अर्जुन देखना चाहते हैं कि :

क) वह किन किन योद्धाओं से युद्ध करने लगे हैं?

ख) कौन कौन लोग अन्यायी दुर्योधन का साथ देने आये हैं?

ग) उनके हक़ छीनने वाले कौरवों के संगी कौन हैं?

घ) वे लोग कैसे अस्त्र शस्त्र लाये हैं?

फिर अर्जुन यह भी जानना चाहते थे कि :

क) उन्हें किस किस से युद्ध करना चाहिये। यानि किन किन से युद्ध करना उचित है?

ख) किस किस से युद्ध करना उन्हें शोभा देता है और किस किस से युद्ध करना उन्हें शोभा नहीं देता?

ग) युद्ध नीति के दृष्टिकोण से भी उन्हें यह जानना था कि कौन से योद्धा बलवान हैं और कौन से निर्बल हैं; ताकि वह अपने बल का व्यर्थ प्रयोग न करके उसका सदुपयोग कर सकें।

अपना लक्ष्य निश्चित करके साधक को भी यही करना चाहिये :

1. अपनी साधन समिधा का स्पष्ट निरीक्षण कर लेना चाहिये।

2. अपनी साधन शक्ति का स्पष्ट निरीक्षण कर लेना चाहिये।

3. गुण, जो अपने में उपार्जित करने हैं, उन्हें देख और समझ लेना चाहिये।

4. गुण, जो अपने से निवृत्त करने हैं, उन्हें देख और समझ लेना चाहिये।

5. विपरीत वृत्तियों की दृढ़ता और हठीलेपन को देख और समझ लेना चाहिये।

6. अपनी मनोचाहनाओं की दृढ़ता को जान लेना चाहिये।

7. अपने ही मोह और संग को समझ लेना चाहिये।

8. अपनी ही लग्न और तनत्व भाव को देख और समझ लेना चाहिये।

नन्हीं लाडली!

क) निज गुण अवगुण देख लो।

ख) अपना लक्ष्य आपको कितना प्रिय है, इसे भी ध्यान से समझ लो।

ग) आपको मान प्रिय है या भगवान, यह भी सोच लो।

घ) आपको न्याय प्रिय है या अपने रिश्ते नाते और प्रियगण, यह भी समझ लो।

ङ) आपको भागवत् गुण से प्रेम है या आप प्रेम के भिखारी बनना चाहते हो?

1. क्या आप केवल उससे प्रेम करोगे जो आपके अनुकूल होगा या प्रेम करना ही उचित है, इसलिये प्रेम करोगे?

2. क्या आप शर्तें लगा कर प्रेम करोगे या बिना किसी शर्त के प्रेम करना सीखना है?

3. क्या अपने प्रति उदासीन होना है या दूसरे इन्सानों के प्रति उदासीन होना है?

ये सब बातें देख कर फिर अपने लक्ष्य की उपलब्धि की राहों में जो विघ्न हैं, उन्हें देख लो, तत्पश्चात् ही जीवन रूपा संग्राम या साधन रूपा संग्राम आरम्भ करो।

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