अध्याय १
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्।।१०।।
देख नन्हीं!
अहंकार रूपा दुर्योधन घबराने लगे, संशय युक्त हो गये फिर कहने लगे कि :
शब्दार्थ :
१. हमारा बल अपूर्ण है, (अयोग्य है)
२. (क्योंकि) यह भीष्म द्वारा रक्षित है।
३. किन्तु इनका, (पाण्डवों का यह बल)
४. पूर्ण है, अजय है,
५. क्योंकि यह भीम से अभिरक्षित है।
तत्व विस्तार :
देख नन्हीं! अहंकार रूपा दुर्योधन पाण्डु सेना देख कर घबरा गये; चाहे उनकी अपनी सेना पाण्डु सेना से भी बहुत अधिक संख्या वाली थी।
यह इसलिये हुआ क्योंकि भीष्म पितामह चाहे इनकी सेना के मुख्य सेनापति थे,
परन्तु फिर भी वह :
क) आयु वृद्ध तथा शिथिल अंगी हो चुके थे।
ख) उनकी हार्दिक सहानुभूति पाण्डवों के साथ थी।
ग) उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि पाण्डवों को अपने हाथ से नहीं मारेंगे।
घ) जब युधिष्ठिर अपने गुरु तथा पितामह का आशीर्वाद माँगने गये तो भीष्म पितामह ने उन्हें आशीर्वाद दिया ʅतुम्हारी विजय हो और तुम फलो फूलोʆ।
ङ) भीष्म, कृष्ण के प्रति अतीव श्रद्धा और भक्ति रखते थे।
च) कर्ण ने भी प्रतिज्ञा की थी कि वह भीष्म पितामह के जीते जी शस्त्र नहीं उठायेंगे।
छ) दुर्योधन जानता था कि उसके सहयोगी गण की वास्तविक शत्रुता पाण्डवों के साथ नहीं है, यानि उसके दुश्मनों के वह दुश्मन नहीं हैं।
ज) फिर पापी के अपने पाप भी उसे संशय पूर्ण बना देते हैं।
झ) अहंकार को सब धोखेबाज़ ही लगते हैं क्योंकि वह स्वयं धोखेबाज़ ही होता है।
इस कारण दुर्योधन संशय युक्त तथा घबराहट पूर्ण हो गया।
दूसरे की सेना उसे बड़ी लगने लगी और अपना बल न्यून लगने लगा।
नन्हीं बिटिया रानी !
सच्चाई के साथी सदा बलवान् होते हैं। या तो सच्चाई का साथ देते नहीं वरना दिलो जान से सहर्ष अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं, क्योंकि :
1) वे तो सच ही अपने प्राण तक न्योछावर करने को तैयार होते हैं।
2) वे सिद्धान्त के लिये लड़ते हैं।
3) उनकी वफ़ा सिद्धान्त से होती है।
4) उनकी लड़ाई अन्याय से होती है।
5) उन्हें अपना कोई कार्य सिद्ध नहीं करना होता।
नन्हीं! भीष्म पितामह ने :
क) सिद्धान्त छोड़ कर मिथ्या कर्तव्य का आसरा लिया।
ख) भगवान छोड़ कर इन्सान से वफ़ा करी।
ग) सत्य तथा न्याय के साथ वफ़ा नहीं करी बल्कि झूठे सिद्धान्त का आसरा लिया।
घ) मिथ्याचारियों का साथ दिया, असुरत्व से वफ़ा निभाई इसी कारण उन्हें भी मरना पड़ा।
नन्हीं! वह लोक लाज तथा मान्यताओं में पड़े रहे।
जीवन में जीव अनेक बार अपनी ही मान्यताओं का शिकार हो जाता है और महा भीषण ग़लतियाँ कर बैठता है। यदि वफ़ा भगवान से हो, आप ठीक ही करेंगे। आप वर्गलाये नहीं जायेंगे।