अध्याय १
अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता:।
नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्ध विशारदा:।।९।।
दुर्योधन द्रोणाचार्य से फिर कहते हैं कि :
शब्दार्थ :
१. केवल यही लोग ही नहीं
२. अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र धारण किये हुए,
३. सबके सब युद्ध में अति प्रवीण,
४. मेरे लिये जीवन को अर्पण किये हुए हैं।
तत्व विस्तार :
देख आभा ! दुर्योधन का अहंकार कहता है,
‘मेरे लिये जीवन अर्पण किये हुए हैं।’
‘हमारे लिये मरने को तैयार हैं’ नहीं कहा।
क) अहंकार का पूर्ण श्रम केवल ‘मैं’ की स्थापना के लिये होता है।‘’
ख) अहंकार केवल ‘मैं’ को ही स्थापित होने के योग्य मानता है।
ग) अहंकार अपने ही गुण गाता है।
‘लोग मेरे साथ हैं, लोग मेरे लिये मरने को तैयार हैं’, यह सब दम्भ दर्प तथा मोह पूर्ण विचार हैं।
दुर्योधन द्रोणाचार्य से कहते हैं कि और भी अनेकों योद्धा और शूरवीर मेरे लिये :
1. मरने मारने के लिये तैयार हैं।
2. कफ़न सर पर बान्ध कर आये हैं।
3. सर्वस्व लुटाने को तैयार हैं।
यह सब भी :
1. युद्ध विद्या में महा प्रवीण हैं।
2. युद्ध विद्या के प्रौढ़ पण्डित हैं।
3. युद्ध विद्या में अतीव निपुण हैं।
4. बहु प्रख्यात और साहसी हैं।
यह सब कुछ उन्होंने द्रोणाचार्य को सांत्वना देने को और उत्साहित करने को कहा।
अहंकार भी जब शरारत करता है तो अपने आपको इस तरह मनाता और सांत्वना देता है। अपने संगी साथियों को भी वह ऐसे ही मनाता और कहता है।