अध्याय १
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।७।।
अब दुर्योधन अपनी सेना के प्रधान महारथी गण का वर्णन करते हैं और कहते हैं कि :
शब्दार्थ :
१. हे द्विजोत्तम (हे ब्राह्मण श्रेष्ठ)!
२. हमारे पक्ष में जो जो
३. विशिष्ट योद्धा हैं,
४. उनको आप जान लीजिये।
५. आपके जानने के लिये
६. मेरी सेना के जो जो सेनापति हैं,
७. मैं उनकी कहता हूँ।
तत्व विस्तार :
द्रोणाचार्य को दुर्योधन ने द्विजोत्तम कहा। अर्थात्, ब्राह्मणों में श्रेष्ठ कहा। दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को :
क) पुरुषोत्तम नहीं कहा।
ख) पुरुषों को जीतने वाला नहीं कहा।
ग) युद्ध को जीतने वाला नहीं कहा।
घ) महाबली या सर्वोच्च शूरवीर नहीं कहा।
ऐसा क्यों?
1. उन्हें उकसाने के लिये और सावधान करने के लिये उन्हें ʅब्राह्मणʆ कहा। यानि उसने संकेत से कहा कि ʅआप ब्राह्मण हैं और लड़ने के लिये आये हैं।ʆ
2. युद्ध कौशल दिखाने की मानो दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से माँग की।
3. युद्ध नीति निपुणता दिखाने की मानो दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से माँग करी।
तत्पश्चात् दुर्योधन द्रोणाचार्य से कहने लगे :
“हमारी सेना में जो विशिष्ट गण हैं, उनके नाम कहता हूँ।” यानि :
क) जो रण विद्या जानते हैं।
ख) जो शस्त्र निपुण हैं।
ग) जो बल शक्ति सम्पन्न हैं।
घ) जो प्रतिष्ठित लोग हैं।
यह कह कर मानो कह रहे हों कि ‘हम भी कमज़ोर नहीं। हमारी सेना में भी बहुत प्रौढ़ शस्त्रधारी लोग हैं। हमारी सेना में भी बहुत योद्धागण सम्मिलित हैं।’