Chapter 7 Shloka 22

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।

लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हि तान्।।२२।।

Endowed with faith, he worships that deity.

From that deity he attains the fulfilment

of his desired objects as ordained by Me.

Chapter 7 Shloka 22

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।

लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हि तान्।।२२।।

Bhagwan says:

Endowed with faith, he worships that deity. From that deity he attains the fulfilment of his desired objects as ordained by Me.

Little one, listen to what the Lord says. “The worship of some people is aimed at desire fulfilment. Ordained by Me, they attain the fruit of their desire from that deity.”

The Lord has already decreed the fulfilment of those desires in their destiny. This means that they receive only what is written in their fate, but they believe that they have received the desired fruits through the worship of a particular deity.

Little one, a sadhak also must do the same.

1. He must become a well wisher of even those who reject him.

2. He must be the well wisher of even those who condemn him.

3. He must be able to discern the others’ heart’s desire and strive to procure it for them even without their asking.

4. He must not even await the other’s gratitude.

This is Brahm’s Yagya in ordinary life. This is the scientific application of knowledge in life. This is the practical shape of the life of the Atmavaan. This is the method whereby the ego can be annihilated and the Supreme Lord can be attained. This is the path of success in Yoga.

The Lord is imparting knowledge along with its practical component. Believe what He says and conduct your life in accordance with what the Lord has always done Himself.

अध्याय ७

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।

लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हि तान्।।२२।।

भगवान कहते हैं :

शब्दार्थ :

१. वह पुरुष, उस श्रद्धा से युक्त हुआ उस देवता के पूजन की चेष्टा करता है।

२. उस देवता से वह नि:संदेह, मेरे द्वारा ही विधान किये हुए उन वांछित भोगों को प्राप्त होता है।

तत्व विस्तार :

देख नन्हीं! भगवान क्या कहते हैं! ‘कुछ लोग कामनाओं की पूर्ति के लिये देवताओं की पूजा करते हैं। वे उन देवताओं से मेरे द्वारा ही विधान किये हुए अपने इच्छित फलों को पाते हैं।’

भगवान ने उनकी रेखा में पहले ही उन भोगों का विधान कर दिया होता है, जो उन्हें मिल जाते हैं। यानि, उन्हें मिलता तो वही है, जो उनके भाग्य में लिखा होता है, किन्तु वे समझते हैं कि उन्हें वांछित फल अपने पूज्य देवता के पूजन के परिणाम रूप मिला है।

देख नन्हीं! साधक को भी यही करना चाहिये।

1. उन्हें अपने ठुकराने वालों के भी हितकर बन जाना चाहिये।

2. जो उनको बुरा भी समझते हैं उनका भी हितकर बन जाना चाहिये।

3. दूसरों के मन को जानकर, उनके बिन माँगे ही उनको उनका वांछित फल दिलाने के यत्न करने चाहियें।

4. उन्हें दूसरे से कृतज्ञता की माँग ही नहीं करनी चाहिये।

यही ब्रह्म का यज्ञ रूपा जीवन है, यही विज्ञान है। आत्मवान् के जीवन का यही रूप है। यही विधि है अहं मिटाने की तथा यही विधि है परम को भी पाने की। योग में सफल हो जाने की भी यही विधि है।

भगवान विज्ञान सहित ज्ञान कह रहे हैं। उनकी बात को मान लो और जीवन में वही करो जो भगवान नित्य स्वयं करते आये हैं।

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