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Chapter 7 Shloka 2
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत:।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते।।२।।
I shall reveal to you this gyan – this knowledge in its entirety,
along with its vigyan – its practical connotation,
knowing which, nothing else remains to be known.
Chapter 7 Shloka 2
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत:।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते।।२।।
I shall reveal to you this gyan – this knowledge in its entirety, along with its vigyan – its practical connotation, knowing which, nothing else remains to be known.
The Lord now says to Arjuna:
1. I will tell you of My true identity in its entirety.
2. I shall introduce you verbally to the knowledge of the Atma.
3. I shall reveal to you fully what I am.
4. Not only this, I shall also explain to you the truth about my Essence along with its practical manifestation.
In other words:
a) I shall tell you how this knowledge is proved in practice.
b) I shall also tell you how this knowledge is generally viewed by the world.
c) I shall also reveal to you how you can acquaint yourself with this knowledge in the world.
d) I shall tell you the means of experiencing this knowledge in life.
The Lord says, “I shall clearly define My Essence and My external manifestation to you. If you truly know Me thus, nothing in the entire world will remain for you to know.”
Little one, all other knowledge becomes superfluous for one who gains knowledge of the Atma; such a one realises that he, too, is not the body but the Atma.
He realises that:
a) He is not the doer of deeds performed by the body.
b) The body is the product of the threefold Prakriti.
c) This body, bound by the threefold attributes of Prakriti, interacts within the sphere of those gunas.
On the practical plane, the manifestation of knowledge is vigyan or a scientific translation of that knowledge into practical living. Knowing the practical manifestation of the Atma, the Atmavaan Yogi realises all – nothing further remains for him to know or to attain.
Little one, if you have to understand this supreme knowledge and its practical application:
1. Fill your mind with shraddha or abiding faith.
2. Permeate your heart with immense love for the Lord.
3. Give yourself up to the Lord completely.
4. Offer each limb to that Supreme One.
5. Place your entire world at His feet.
6. Know in life that your body belongs to the Lord and it is through the vehicle of your body that That Supreme Atma shall traverse the world.
a) If you truly wish to apply this attitude in your daily living;
b) If this point of view appears to you to be the Truth;
c) If you can employ this attitude in your dealings in the world;
then you can indeed understand all that the Lord is saying here. Knowing this, nothing else will remain to be attained.
अध्याय ७
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत:।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते।।२।।
फिर भगवान ने कहा :
शब्दार्थ :
१. तुझे मैं इस ज्ञान को विज्ञान के सहित पूर्णता से कहूँगा,
२. जिसको जान कर यहाँ फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रहता है।
तत्व विस्तार :
अब भगवान अर्जुन से कहते हैं कि :
क) तुझे मैं अपने स्वरूप का ज्ञान पूर्णतय: कहूँगा।
ख) तुझे मैं आत्म तत्व का शब्द ज्ञान पूर्णतय: कहूँगा।
ग) जो मैं हूँ, उसका ज्ञान पूर्णता से कहूँगा।
घ) इतना ही नहीं, मैं तुम्हें अपना स्वरूप विज्ञान सहित समझा दूँगा। यानि,
1. संसार में वह ज्ञान जिस तरह प्रमाणित होता है, वह भी कहूँगा।
2. संसार में वह ज्ञान जैसे देखा जा सकता है, वह भी कहूँगा।
3. संसार में उस ज्ञान का कैसे परिचय मिल सकता है, यह भी कहूँगा।
4. संसार में उस ज्ञान का कैसे अनुभव हो सकता है, यह भी कहूँगा।
भगवान कहते हैं, ‘मैं अपने रूप तथा स्वरूप, दोनों को तुम्हारे लिये स्पष्टता से कहूँगा, जिसे जानकर यदि तू उसकी सत्यता तथा निहित तत्व सार को समझ गया, तो पूर्ण संसार में तुम्हारे लिए और कुछ भी ज्ञातव्य नहीं रह जायेगा।’
नन्हीं! जिसने आत्मा को मान लिया, उसके लिए बाकी सब ज्ञान निरर्थक हो जाता है, क्योंकि वह यह भी जान लेता है, कि वह स्वयं आत्मा है, तन नहीं है।
वह जान लेता है कि :
क) वह तनो कर्म का कर्ता भी नहीं है,
ख) तन त्रिगुणात्मक प्रकृति की रचना है।
ग) तन त्रिगुणात्मक प्रकृति के गुणों से बंधा हुआ, गुणों में स्वत: वर्तता है। जीवन में व्यावहारिक स्तर पर ज्ञान का रूप विज्ञान है। यदि आत्मा का व्यावहारिक स्तर पर रूप समझ आ गया तो उस आत्मवान् योगी के लिये जहान में कुछ भी प्राप्तव्य नहीं रहेगा।
नन्हीं लाडली! यदि यह ज्ञान विज्ञान सहित तूने समझना है, तो :
1. अपने मन को श्रद्धा से परिपूर्ण कर ले।
2. अपने मन में भगवान के लिये अगाध प्रेम भर ले।
3. अपने आप को भगवान के हवाले कर दे।
4. अपने सम्पूर्ण अंग भगवान को दे दे।
5. अपना सम्पूर्ण संसार भगवान को दे दे।
6. जीवन में यह समझ लो कि तुम्हारा तन भगवान का है और तुम्हारे तन राही ही भगवान ने आत्म रूप संसार में व्यवहार करना है।
– यदि जीवन में यह दृष्टिकोण अपनाना चाहते हो,
– यदि यह दृष्टिकोण आपको सत्मय प्रतीत होता है,
– यदि इस दृष्टिकोण से जीवन में व्यवहार कर सकते हो,
तब यहाँ जो भगवान कह रहे हैं, आपको उसकी समझ आ जायेगी। फिर उसे जान कर जीवन में कुछ भी जानने योग्य नहीं रह जायेगा।