अध्याय ४
श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति।
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति।।२६।।
अब भगवान कर्मेन्द्रियों तथा ज्ञानेन्द्रियों के विषय में यज्ञ की बात कह रहे हैं :
शब्दार्थ :
१. कई लोग श्रोत्र आदि इन्द्रियों को संयम रूपा अग्नि में होम करते हैं,
२. और कई, शब्दादि विषयों को इन्द्रिय रूप अग्न में होम करते हैं।
तत्व विस्तार :
नन्हीं! अब कर्म तथा ज्ञानेन्द्रियों के यज्ञ के बारे में समझ ले। कई लोग :
1. ज्ञानेन्द्रियों को विषयों से हटा कर संयम करते हैं।
2. ज्ञानेन्द्रियों का विषयों से संग छुड़ाने का संयम करते हैं।
3. सत्त्व की ओर जाने के लिये संयम करते हैं।
4. सत्त्वपूर्ण ज्ञान सीखने के लिये संयम करते हैं।
5. परम की राह पर चलने के लिये संयम करते हैं।
वे निरन्तर संयम का अभ्यास करते रहते हैं।
क) वे संयम रूपा अग्न में बाह्य संयोग से वियोग करवाते हैं।
ख) वे बहुत ध्यान लगाते हैं।
ग) वे समाधि लगाना चाहते हैं।
घ) वे ज्ञान का अध्ययन करते हैं।
ङ) वे शास्त्र पठन करते हैं।
च) वे भागवत् चर्चा सुनते हैं।
छ) वे ज्ञान उपार्जित करते हैं।
ज) वे विपरीत चाह और लग्न को ज्ञानेन्द्रियों की राही भस्म करते जाते हैं।
नन्हीं! ये लोग भी परम चाहुक ही होते हैं।
क) ये लोग अपनी ज्ञानेन्द्रियों को विषय संयोग से रोकना चाहते हैं, ये अपनी ज्ञानेन्द्रियों को बाह्य ज्ञान अन्दर नहीं लाने देते। ये लोग समझते हैं कि इन्द्रियों का विषयों से संग ही न हो, यानि सम्पर्क ही न हो, तो इन्द्रियाँ नित्य अप्रभावित रहेंगी।
ख) विषय सम्पर्क के वियोग से ये मन को मौन करना चाहते हैं। ये लोग अपनी इन्द्रियों को निष्क्रिय करना चाहते हैं और इस ढंग से वे अपने मन को परम में टिकाना चाहते हैं। ये इन्द्रिय स्वतंत्रता को पसन्द नहीं करते। ये इन्द्रिय विरोध द्वारा मन मौन करके उसे परम में टिकाना चाहते हैं।
नन्हीं! याद रहे, ये मन में भी विषयों के रस का उपभोग नहीं करते। ये यज्ञमय जीवन व्यतीत करने वाले हैं, मिथ्याचारी नहीं है।
और कई लोग :
1. शब्द आदि कर्मेन्द्रियों की क्रिया शक्ति को इन्द्रिय रूप अग्न में जलाते हैं।
2. शब्द आदि विषयों को इन्द्रिय रूप अग्न में जलाते हैं।
3. इन्द्रियों से सुन्दर काम करवाते हैं।
4. इन्द्रियों से लोक सेवा करवाते हैं।
5. अपनी इन्द्रियों से लगातार जग के काम करते हैं।
6. बहु सेवा, धर्म, कर्म आदि करते हैं। वे लोक कल्याण अर्थ कर्म करते हैं।
7. समाज संवारने वाले होते हैं, यानि कर्मेन्द्रियों का सदुपयोग करते हैं।