Chapter 4 Shloka 16

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिता:।

तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।१६।।

What is action and what is inaction –

even men of wisdom are confused over this issue.

I shall explain to you the truth about action,

knowing which you will be

freed from its evil, binding nature.

Chapter 4 Shloka 16

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिता:।

तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।१६।।

What is action and what is inaction – even men of wisdom are confused over this issue. I shall explain to you the truth about action, knowing which you will be freed from its evil, binding nature.

What is action and what is inaction, this has puzzled many intellectuals and men of wisdom. Learned pandits, scholars and even those with great spiritual insight have not found the answer. This subject confuses all.

1. It unsettles the mind by arousing moha.

2. It blurs one’s understanding of factual truth;

3. It makes the untrue seem like the truth;

4. Due to a lack of understanding of this subject, the individual performs deeds that are contrary to the Scriptures.

The Lord offers to clarify this baffling subject for Arjuna, knowing which Arjuna would be freed from ‘evil’.

For:

a) the binding nature of karma;

b) the fetters of desire;

c) the bane of selfishness;

d) the scourge of sorrow and duality

are all evil and harmful to man. The Lord offers Arjuna freedom from all these.

अध्याय ४

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिता:।

तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।१६।।

भगवान कहने लगे कि :

शब्दार्थ :

१. कर्म क्या है,

२. अकर्म क्या है,

३. इस विषय में बुद्धिमान भी मोहित हैं।

४. यह कर्म तत्व तुझे कहता हूँ,

५. जिसे जान कर तू अशुभ बंधन से छूट जायेगा।

तत्व विस्तार :

कर्म विभ्रान्त विषय :

कर्म क्या है और क्या नहीं है, अकर्म क्या है और क्या नहीं है, इस विषय को :

क) कवि तथा विद्वान् भी नहीं जान पाये।

ख) महा अनुभवी तथा प्रमाण से सिद्ध करने वाले ज्ञानी भी नहीं जान पाये।

ग) शास्त्रज्ञ पण्डित तथा ब्राह्मण गण भी नहीं जान पाये।

यह विषय सबको ही :

1. विभ्रान्त कर देता है।

2. मोह में डाल कर अशान्त कर देता है।

3. वास्तविकता की समझ धुँधली और अस्पष्ट भी कर देता है।

4. असत् में सत् का आभास दिलाता है।

5. कर्म का निहित रूप समझ ही नहीं आने देता।

6. शास्त्र अनुकूल कर्म की जगह, बेसमझी के कारण जीव से शास्त्र विरुद्ध कर्म हो जाते हैं।

भगवान कहते हैं, ‘इस विषय में तो अति बुद्धिमान गण भी मोहित हो जाते हैं। ले अर्जुन! तुम्हारे लिये मैं इसका राज़ अच्छी तरह कहता हूँ। तू इसे जान कर अशुभ से छूट जायेगा।’

क) कर्म बन्धन अशुभ होता है।

ख) कामना अशुभ होती है।

ग) स्वार्थ अशुभ ही होता है।

घ) दु:ख और द्वन्द्व पूर्णता अशुभ ही होते हैं।

नन्हीं! जो कल्याण का मार्ग नहीं होता, वह अशुभ ही तो है। जो श्रेय पथ नहीं होता, जो जीव को नित्य नवीन बन्धनों में बाँध दे, वह अशुभ ही तो है।

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