अध्याय १
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिन: स्याम माधव।।३७।।
अर्जुन कहते हैं श्री कृष्ण को :
शब्दार्थ :
१. इसलिये, हे माधव!
२. अपने बन्धु व धृतराष्ट्र के पुत्रों को,
३. हमारे लिये मारना उचित नहीं,
४. क्योंकि अपने बन्धु जनों को मार कर
५. हम कैसे सुखी होंगे?
तत्व विस्तार :
अर्जुन यह भी कह कर आये हैं कि, “इन पापियों को मार कर हमें पाप ही लगेगा।” अब कहते हैं – “अपने कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?”
अर्जुन के मन में संशय क्यों उठा?
देख नन्हीं! यदि कौरव और उनके सहयोगी गण पाण्डवों के अपने कुटुम्बी न होते, तब अर्जुन के मन में यह संशय न उठते और वह ‘किम् कर्तव्य विमूढ़’ न होते। तब अर्जुन का निर्णय सीधा होता कि इनको मारना ही चाहिये। अब वह मुश्किल में पड़ गये क्योंकि आचार्य, पितामह तथा अन्य नाते बन्धु सामने खड़े थे। नाते बन्धु सामने देख कर अर्जुन कह रहे हैं कि :
1. इन्हें मार कर हम सुखी नहीं हो सकते।
2. इन्हें मार कर हमें पाप ही लगेगा।
3. इन्हें मार कर हमें प्रसन्नता भी नहीं मिलेगी।
नन्हीं! न्याय त्याग के कारण हम अपने जीवन में भी यूँ ही करते हैं। अपने कुल वालों का तो लिहाज़ कर देते हैं, यानि अपने नाते बन्धु और मित्रों को छुपाने या बचाने के यत्न करते हैं, चाहे वह महा अत्याचारी ही हों।
सत् अनुयायी, सत् से संग के कारण सत् से विरोधी वृत्तियों का हनन कर देते हैं और दु:खी नहीं होते। सच्चे भागवत् प्रेमी गण तो न्याय के लिये :
1. अपने प्राण, मान, आजीविका, धन, सब कुछ न्योछावर कर देते हैं।
2. अपने कुल, बन्धु, मित्रों को भी न्यौछावर कर देते हैं।
अर्जुन ने भगवान कृष्ण को ‘माधव’ कह कर पुकारा, मानों श्री कृष्ण को उनके कुल की याद दिलाई।
‘माधव’, मधुकुल, यदुवंश में उत्पन्न हुए कृष्ण को कहते हैं।
माधव :
मा – 1. जननी को कहते हैं।
2. धन की देवी लक्ष्मी को कहते हैं।
3. ब्रह्म की प्रकृति को कहते हैं।
4. त्रिगुणात्मिका शक्ति को भी कहते हैं।
धव – ‘धव’ पति को कहते हैं, वास्तविक मालिक को कहते हैं।
तो माधव का अर्थ हुआ, सम्पूर्ण सृष्टि का पति। इस सृष्टि में दृष्ट तथा अदृष्ट के पति, यानि अखिल पति को ‘माधव’ कहते हैं।
एक ओर से अर्जुन भगवान को माधव तथा जनार्दन इत्यादि कह रहे हैं दूसरी ओर मानो भगवान को ही ज्ञान दे रहे हैं।