Chapter 18 Shloka 19

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत:।

प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।।१९।।

The Lord now speaks of the differentiation of qualities

and says: Knowledge, action and the doer

have been described in the Saankhya as of three types

in accordance with the differentiation of attributes.

Now hear of these from Me in detail.

Chapter 18 Shloka 19

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत:।

प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।।१९।। 

The Lord now speaks of the differentiation of qualities and says:

Knowledge, action and the doer have been described in the Saankhya as of three types in accordance with the differentiation of attributes. Now hear of these from Me in detail.

Little one, the Lord once more explains the classification of attributes and elucidates on:

a) the attributes of the individual;

b) the qualities which make the individual sattvic, rajsic or tamsic;

c) those attributes of the individual which impel him towards other attributes.

Knowledge is also composed of the three attributes:

1. Knowledge can be sattvic.

2. Knowledge can be rajsic.

3. Knowledge can be tamsic too.

Actions too, can be classified as of three types in accordance with the attribute which is predominant therein. The doer who performs actions is also of three kinds.

The Lord says that He will now explain the differentiation between the three kinds of knowledge, actions and doers as given in the Saankhya philosophy.

अध्याय १८

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत:।

प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।।१९।। 

अब भगवान पुनः गुण भेद के विषय में कहने लगे कि :

शब्दार्थ :

१. ज्ञान, कर्म और कर्ता,

२. सांख्य शास्त्र में गुण भेद से तीन प्रकार के कहे गये हैं,

३. उनको भी यथार्थ रूप में (मुझसे) सुन!

तत्त्व विस्तार :

नन्हूं! भगवान अर्जुन को गुण भेद समझा रहे हैं और मानो बता रहे हैं कि :

1. जीव के गुण कैसे होते हैं?

2. जीव किस प्रकार के गुणों के कारण सात्त्विक, राजसिक या तामसिक होता है?

3. जीव के किस प्रकार के गुण उसे किन गुणों की ओर प्रवृत्त करते हैं?

नन्हूं! ज्ञान भी त्रैगुणी होता है :

– ज्ञान सत्त्व पूर्ण भी हो सकता है।

– ज्ञान रजोगुण पूर्ण भी हो सकता है,

– ज्ञान तमपूर्ण भी हो सकता है।

इसी तरह जो कर्म करते हो, वह भी तीन गुणों वाले हो सकते हैं और फिर कर्ता, जो कर्म करने वाला होता है, वह भी तीन गुणों वाला हो सकता है।

भगवान कहने लगे कि अब ज्ञान, कर्म और कर्ता के भेद, जो सांख्य शास्त्र में दिये हुए हैं, वह समझाता हूँ।

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