अध्याय १४
अर्जुन उवाच
कैर्लिङ्गैस्त्रीन् गुणानेतानतीतो भवति प्रभो।
किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन् गुणानतिवर्तते।।२१।।
भगवान से अर्जुन पूछते हैं कि हे भगवान! आप मुझे बताईये कि :
शब्दार्थ :
१. इन तीनों गुणों से अतीत हुआ पुरुष,
२. किन किन लिंगों (चिन्हों) से युक्त होता है?
३. किस प्रकार के आचरण वाला होता है?
४. हे प्रभो! (मनुष्य) किस उपाय से,
५. इन तीनों गुणों से अतीत होता है?
तत्त्व विस्तार :
अब अर्जुन भगवान से पूछ रहे हैं कि हे प्रभो! इन गुणों से अतीत पुरुष किन लिंगों से युक्त होता है? लिंग का अर्थ है लक्षण, गुण, सबूत का साक्षित्व। ‘लिंग’ प्रमाण को कहते हैं।
यहाँ अर्जुन भगवान से गुणातीत के लक्षण पूछ रहे हैं। फिर पूछते हैं कि गुणातीत का आचरण कैसा होता है? यानि, वह जीवन में कैसे होता है, जीवन में कैसा व्यवहार करता है? वह जीवन में कैसे कर्म करता है? इत्यादि।
अर्जुन फिर आगे जाकर इस प्रश्न को बढ़ाते हुए कहते हैं कि :
क) गुणातीत कैसे बनते हैं?
ख) गुणों को कैसे उलांघ सकते हैं?
ग) गुणों से कैसे परे हो जाते हैं?