Chapter 14 Shlokas 17, 18

सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च।

प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च।।१७।।

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।

जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः।।१८।।

Knowledge emerges from sattva; from rajas, greed. Similarly from tamas emerge sloth, moha and ignorance. Those established in sattva proceed on the northward path, those who abide in rajas live in the middle realms and those who are entrenched in tamas attain the nether worlds.

Chapter 14 Shlokas 17, 18

सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च।

प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च।।१७।।

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।

जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः।।१८।।

Bhagwan tells Arjuna to become acquainted with the effects of these attributes:

Knowledge emerges from sattva; from rajas, greed. Similarly from tamas emerge sloth, moha and ignorance. Those established in sattva proceed on the northward path, those who abide in rajas live in the middle realms and those who are entrenched in tamas attain the nether worlds.

Little seeker of the Truth, the Lord now says:

1. The attribute of sattva leads one towards knowledge.

2. The attribute of rajas leads the individual towards greed and covetousness.

3. The attribute of tamas leads the individual towards sloth, moha and ignorance.

Sattva leads northwards

The Lord reiterates that the attribute of sattva leads an individual towards the upper spheres.

1. It eradicates the body idea.

2. It leads one towards greatness.

3. It enables one to proceed northwards to the purer strata.

4. It attracts one towards the path of righteousness and Truth – the shreya path.

5. It leads to the spiritual uplift of the ordinary mortal.

Rajas leads to the attainment of the middle realms

The attribute of rajas halts the individual in the middle strata.

a) It turns the individual into a combination of attributes.

b) It brings about degraded tendencies in the individual and imbues him with evil attributes.

c) It engages the individual in acts of virtue and vice as any other ordinary being.

Tamas leads downward

The attribute of tamas ensures a strong attachment with the body self and therefore the germination of moha and ignorance is inevitable. Carelessness and confusion automatically follow.

Pramaad

(See also Chp.14, shloka 13 for an elucidation of this word)

1. Lack of vigilance.

2. Taking the wrong decision.

3. To remain intoxicated.

4. To be intoxicated with attachment to the body.

5. To perform every inappropriate action instigated by the madness of body attachment and yet justify oneself as correct.

Bhagwan says that such people tend to fall to greater depths and are reborn in degraded homes. Thus they attain even more depraved attitudes and the darkness of ignorance grows unabated. Such people develop animal-like traits and they fall into abysmal depths of degradation. Little one, such people can no longer discern the difference between Truth and falsehood. They cannot endure any afflictions. They indulge in innumerable untruths in order to hide one lie. They are prepared to ruin everyone in order to save their own home. “The enemy must be destroyed – no matter if we too, die in the bargain,” such is their philosophy.

अध्याय १४

सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च।

प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च।।१७।।

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।

जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः।।१८।।

भगवान अर्जुन से कहने लगे कि इन सब गुणों के कार्य पुनः समझ ले!

शब्दार्थ :

१. सतो गुण से ज्ञान

२. और रजोगुण से लोभ उत्पन्न होता है,

३. ऐसे ही तमोगुण से प्रमाद, मोह और अज्ञान उत्पन्न होते हैं।

४. सत्त्व गुण में स्थित उत्तरायण की ओर जाते हैं।

५. रजोगुण में स्थित मध्य लोकों में रहते हैं।

६. तामस गुण पूर्ण वृत्ति में स्थित लोग अधोगति को पाते हैं।

तत्त्व विस्तार :

सत्य अभिलाषी नन्हूँ! भगवान कहते हैं कि,

1. सतोगुण जीव को ज्ञान की ओर ले जाता है।

2. रजोगुण जीव को लोभ की ओर ले जाता है।

3. तमोगुण जीव को प्रमाद, मोह और अज्ञान की ओर ले जाता है।

सतोगुण उत्तरायण की ओर ले जाता है :

भगवान पुनः कहते हैं कि सतोगुण जीव को ऊपर की ओर ले जाता है, यानि,

क) जीवत्व भाव के मिटाव की ओर ले जाता है।

ख) श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।

ग) उत्तरायण की ओर ले जाता है।

घ) श्रेय पथ पे ले जाता है।

ङ) साधुता की ओर ले जाता है।

रजोगुण परिणाम – मध्य लोक की प्राप्ति :

रजोगुण जीव को मध्य में ठहराता है। यानि,

1. रजोगुण, जीव को साधारण आदमी की तरह मिश्रित गुण वाला बना देता है।

2. रजोगुण जीव को नीच वृत्ति तथा निकृष्ट गुण सम्पन्न बना देता है।

3. रजोगुण जीव को साधारण आदमियों की तरह पाप और पुण्य में प्रवृत्त करता है।

तम नीचे की ओर ले जाता है :

तमोगुण जीव को नीचे की ओर ले जाता है। तमोगुण शरीर से अत्यधिक संग रखने के कारण मोह उत्पन्न करता है, मोह उत्पन्न करने के पश्चात् अज्ञान उत्पन्न करता है और अज्ञान उत्पन्न करने के पश्चात् प्रमाद उत्पन्न करता है।

प्रमाद : (प्रमाद का विस्तार के लिये श्लोक १४/१३ देखिये)

प्रमाद को पुनः समझ ले। प्रमाद का अर्थ है,

क) असावधानी,

ख) ग़लत निर्णय ले लेना,

ग) नशे में चूर रहना,

घ) तन के नशे में मदमस्त रहना,

ङ) तन के नशे के पागलपन में सारी भूलें करके भी अपने आपको ठीक सिद्ध करना।

भगवान कहते हैं कि तमोगुण वाले और भी नीच योनियों को पाते हैं; यानि, और भी निकृष्ट गुण पाते हैं, जिनके कारण उनका अंधकार और बढ़ जाता है। उनकी आदतें जानवरों जैसी हो जाती हैं, उनकी वृत्ति मूढ़ों जैसी हो जाती है। वे तो घोर अंधकार में गिरते हैं।

नन्हीं! उन्हें झूठ और सच में भेद नज़र नहीं आता, वे तो कुछ भी सहन नहीं करते। एक झूठ छिपाने के लिये वे लाखों झूठ बोल देते हैं। अपना घर बचाने के लिये वे सबको तबाह करने को तैयार होते हैं। ‘यदि स्वयं मर जायें तो क्या परवाह, दुश्मन तो मर जायेगा’, ऐसा उनका भाव होता है।

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