अध्याय ११
संजय उवाच
एतच्छुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी।
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीत: प्रणम्य।।३५।।
संजय कहते हैं धृतराष्ट से :
शब्दार्थ :
१. केशव की ऐसी वाणी सुन कर,
२. मुकुट धारी अर्जुन,
३. हाथ जोड़ कर कांपता हुआ नमस्कार करके,
४. भयभीत हुआ और विनम्र हुआ,
५. प्रणाम करके,
६. गद्गद् हुआ भगवान से कहने लगा।
तत्व विस्तार :
अर्जुन मानो कहने लगे :
क) भगवान के महाकाल रूप से भयभीत हुआ हूँ मैं।
ख) मैं मित्र, नाते तथा बन्धु जन की मृत्यु निश्चित जान कर भयभीत हुआ हूँ।
ग) मैं सखा कृष्ण का विराट रूप देख कर भी भयभीत हुआ हूँ।
घ) निमित्त मुझी को बनना है, यह जान कर भी भयभीत हुआ हूँ।
भय और विजय संयोग हुआ तो कांप उठा।
भय में कृष्ण का प्रेम भी था, भय में अर्जुन का प्रेम भी था।
– उसे रोमांच हुआ और वह विकम्पित हो गया।
– वह विनम्र हुआ और गद्गद् हो गया।
– वह आश्चर्यचकित भी कुछ हो गया, वह पुलकित मनी भी हो गया और सीस झुका कर नमन किया।
नन्हीं देख! यहाँ कहते हैं कि मुकुटधारी अर्जुन हाथ जोड़ता हुआ, कांपता हुआ, नमस्कार करता हुआ, गद्गद् वाणी से, डरते डरते कृष्ण को प्रणाम करके बोला।
कृष्ण को यहाँ केशव कहा, केशव का अर्थ पुन: समझ ले।
*केशव (*केशव १/३१)
केशव = क्लिष् + अच = वा+उ
क्लिष् का अर्थ है पीड़ित होना, संतापित होना, सताया हुआ।
अच् का अर्थ है प्रार्थना करना, सम्मान देना, जानना, अनजानापन।
वा का अर्थ है सदृश्, जैसा, उपमा।
इस सन्दर्भ में केशव का अर्थ होगा :
1. महापीड़ित के समान प्रार्थना करने वाला।
2. महा दु:खी के समान मनाने वाला।
3. महा झुके हुए के समान सम्मान देने वाला।
यानि :
क) दूसरों के दु:ख के सदृश होने वाला।
ख) दूसरों की व्यथा में एकरूप होने वाला।
ग) दूसरों को उनके ही दु:ख के तद्रूप होकर मनाने वाला।
नन्हीं! अब ध्यान से देख!
भगवान कृष्ण अर्जुन के सारथी बन कर खड़े थे और वीर योद्धा और मालिक रूप राजा की जगह अर्जुन खड़े थे।
भगवान अर्जुन को मना रहे थे, वह अर्जुन के तद्रूप होकर, उसकी स्थिति के अनुसार उसे समझा रहे थे।
अपनी श्रेष्ठता तथा शूरवीरता से संग होने के कारण अर्जुन अभी भगवान की उच्चतम स्थिति को नहीं समझ रहे। भगवान का विकराल रूप देख कर वह मुकुटधारी अर्जुन नित्य भक्त वात्सल्य हेतु अपने भक्तों के पास झुके हुए कृष्ण के सम्मुख झुक गया। अपने सखा की इतनी उच्च स्थिति को देख कर वह घबरा गया।