अध्याय ११
न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा।
दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम्।।८।।
देख नन्हीं! अब भगवान की अपार कृपा देख!
वह कहते हैं :
शब्दार्थ :
१. परन्तु (तुझ में) मेरे को,
२. इन अपने प्राकृत नेत्रों द्वारा देखने की सामर्थ्य नहीं है,
३. (इसलिये) मैं तुम्हें दिव्य नेत्र देता हूँ,
४. जिससे तू मेरे ऐश्वर्य और योग को देख!
तत्व विस्तार :
भगवान कहने लगे, ‘तू इन चर्म चक्षओं से मुझ आत्मा को नहीं देख सकता।’
1. आत्मा तो इन्द्रियों से परे है,
2. आत्मा तो मन से परे है,
3. आत्मा तो बुद्धि से परे है, इसे नेत्र कैसे देखेंगे?
इसलिये करुणा पूर्ण भगवान कहते हैं, ‘तुझे मैं दिव्य चक्षु देता हूँ जिनके राही तू आत्म तत्व में सम्पूर्ण सृष्टि को देख सकेगा।’
दिव्य चक्षु
नन्हीं! प्रथम ‘दिव्य चक्षु’ का अर्थ समझ ले :
क) ये चक्षु उसके पास होते हैं जो तनत्व भाव को भूल चुका हो। साधारणतय: हम जो भी देखते हैं, उसको अपने तन, मन तथा बुद्धि के तद्रूप होकर ही देखते हैं। भगवान जिन चक्षुओं की बात कर रहे हैं, वे निरावरण के चक्षु हैं।
ख) ये चक्षु आत्मा के दृष्टिकोण से देखने वाले के होते हैं।
ग) दिव्य चक्षु द्रष्टा भाव रहित के चक्षु हैं।
घ) दिव्य चक्षु अहंकार रहित के चक्षु हैं।
ङ) ये चक्षु ही भिन्नता में अभिन्नता देख सकते हैं।
च) प्रज्ञावान् के चक्षु हैं ये!
छ) ये चक्षु उस समाधिस्थ के होते हैं जो अपने तन, मन तथा बुद्धि के प्रति मानो प्रगाढ़ निद्रा में सो गया हो।
नन्हीं! ये चक्षु जो अर्जुन को मिले, दिव्य इस कारण थे, क्योंकि इनके द्वारा वह बाह्य रूप को न देख कर तत्व रूप से सब कुछ देखने लगा। भगवान कृष्ण तो वैसे ही एक तनधारी के रूप में उसके सम्मुख खड़े थे। भगवान कृष्ण का रूप नहीं बदला था! यदि कृष्ण का रूप बदल जाता और इतना विशाल हो जाता तो उसे बाक़ी लोग, जो कुरुक्षेत्र में एकत्रित हुए थे, वे भी देख लेते।
यदि सच ही भगवान का स्थूल रूप इतना बड़ा हो जाता तो नन्हीं! यह युद्ध भी बन्द हो जाता, क्योंकि इस अलौकिकता को देख कर लोग भगवान का विरोध न कर सकते।
दिव्य दृष्टि दिव्यता दर्शन की शक्ति होती है। दिव्य दृष्टि से जीव मानो सूक्ष्म, अति सूक्ष्म, परम तत्व को देखता है। अर्जुन इस दिव्य चक्षु के राही,
1. परमात्मा के विराट रूप को देखने लगा।
2. आत्मा की अखण्डता को देखने लगा।
3. आत्मा में सम्पूर्ण सृष्टि को समाहित देखने लगा।
नन्हीं! तू भी कुछ पल के लिए अपने आपको भूल कर आत्मा को समझने के प्रयत्न कर।